Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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९६ प्र. व्यंजनावग्रह कोने कहे छे ?
उ. अव्यक्त (अप्रगटरूप) पदार्थना अवग्रहने
व्यंजनावग्रह कहे छे.
९७ प्र. व्यंजनावग्रह अर्थावग्रहनी माफक सर्व
इन्द्रियो अने मन द्वारा थाय छे ? के केवी रीते ?
उ. व्यंजनावग्रह चक्षु अने मनना सिवाय बाकीनी
सर्वे इन्द्रियोथी थाय छे.
९८ प्र. व्यक्त अने अव्यक्त पदार्थोना केटला भेद
छे?
उ. दरेकना बार बार भेद छे. बहु, एक, बहुविध,
एकविध, क्षिप्र, अक्षिप्र, निसृत, अनिसृत, उक्त, अनुक्त,
ध्रुव, अध्रुव.
९९ प्र. श्रुतज्ञान कोने कहे छे ?
उ. मतिज्ञानथी जाणेला पदार्थना संबंधने लईने
थयेल बीजा पदार्थना ज्ञानने श्रुतज्ञान कहे छे. जेमके‘घडो’
शब्द सांभळवा पछी उत्पन्न थयेला कंबुग्रीवादिरूप घडानुं
ज्ञान.
१०० प्र. दर्शन क्यारे थाय छे ?
उ. ज्ञानना पहेलां दर्शन थाय छे. दर्शन विना
अल्पज्ञजनोने ज्ञान थतुं नथी, परंतु सर्वज्ञ देवने ज्ञान अने
दर्शन एक साथे थाय छे.
१०१ प्र. चक्षुदर्शन कोने कहे छे?
उ. नेत्रजन्य मतिज्ञानना पहेलां सामान्य प्रतिभास
अथवा अवलोकनने चक्षुदर्शन कहे छे.
१०२ प्र. अचक्षुदर्शन कोने कहे छे?
उ. चक्षु (आंख)ना सिवाय बाकीनी इन्द्रियो अने
मनसंबंधी मतिज्ञानना पहेलां थवावाळा सामान्य अवलोकन
(दर्शन) ने अचक्षुदर्शन कहे छे.
१०३ प्र. अवधिदर्शन कोने कहे छे?
उ. अवधिज्ञाननी पहेलां थनार सामान्य
अवलोकनने अवधिदर्शन कहे छे.
१०४ प्र. केवळदर्शन कोने कहे छे?
उ. केवळज्ञाननी साथे थनार सामान्य अवलोकनने
केवळदर्शन कहे छे.
२२ ][ अध्यायः १श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ २३