१०५ प्र. श्रद्धागुण कोने कहे छे?
उ. जे गुणनी निर्मळदशा प्रगट थवाथी पोताना
शुद्ध आत्मानो प्रतिभास (यथार्थ प्रतीति) थाय, तेने
श्रद्धागुण कहे छे.
१०६ प्र. चारित्रगुण कोने कहे छे?
उ. बाह्य अने आभ्यंतर क्रियाना निरोधथी
प्रादुर्भूत आत्मानी शुद्धिविशेषने चारित्र कहे छे, आवा
चारित्रनी कारणभूत शक्तिने चारित्रगुण कहे छे.
१०७ प्र. बाह्यक्रिया कोने कहे छे?
उ. हिंसा करवी, जुठुं बोलवुं, चोरी करवी, मैथुन
सेववुं, परिग्रहसंचय कर्या करवो.
१०८ प्र. आभ्यंतरक्रिया कोने कहे छे?
उ. योग अने कषायने आभ्यंतर क्रिया कहे छे.
१०९ प्र. योग कोने कहे छे?
उ. मन, वचन, कायाना निमित्तथी आत्माना प्रदेशो
चंचळ थवापणाने योग कहे छे.
११० प्र. कषाय कोने कहे छे?
उ. क्रोध, मान, माया, लोभरूप आत्माना विभाव
परिणामोने कषाय कहे छे.
१११ प्र. चारित्रना केटला भेद छे?
उ. चार छेः – स्वरूपाचरणचारित्र, देशचारित्र,
सकलचारित्र अने यथाख्यातचारित्र कहे छे.
११२ प्र. स्वरूपाचरणचारित्र कोने कहे छे?
उ. शुद्धात्मानुभवथी अविनाभावी चारित्रविशेषने
स्वरूपाचरणचारित्र कहे छे.
११३ प्र. देशचारित्र कोने कहे छे?
उ. श्रावकोना व्रतोने देशचारित्र कहे छे.
११४ प्र. सकलचारित्र कोने कहे छे?
उ. मुनिओनां व्रतोने सकलचारित्र कहे छे.
११५ प्र. यथाख्यातचारित्र कोने कहे छे?
उ. कषायोना सर्वथा अभावथी प्रादुर्भूत आत्मानी
शुद्धिविशेषने यथाख्यातचारित्र कहे छे.
२४ ][ अध्यायः १श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ २५