Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration). Beejo Adhyay.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 110

 

background image
श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ३१
बीजो अधयाय
१३३ प्र. जीवना केटला भेद छे?
उ. बे छेःसंसारी अने मुक्त.
१३४ प्र. संसारी जीव कोने कहे छे?
उ. कर्म सहित जीवने संसारी जीव कहे छे.
१३५ प्र. मुक्त जीव कोने कहे छे?
उ. कर्मरहित जीवने मुक्त जीव कहे छे.
१३६ प्र. कर्म कोने कहे छे?
उ. जीवना रागद्वेषादिक परिणामोना निमित्तथी
कार्माणवर्गणारूप जे पुद्गलस्कंध जीवनी साथे बंधने प्राप्त
थाय छे, तेने कर्म कहे छे.
१३७ प्र. बंधना केटला भेद छे?
उ. चार छेःप्रकृतिबंध, प्रदेशबंध, स्थितिबंध अने
अनुभागबंध.
१३८ प्र. ए चारे प्रकारना बंधोनुं कारण शुं छे?
उ. प्रकृतिबंध अने प्रदेशबंध योग ( मन, वचन,
कायना निमित्ते थतुं आत्माना प्रदेशोनुं कंपन)थी थाय छे;
स्थितिबंध अने अनुभागबंध कषाय (मिथ्यात्व, क्रोध, मान,
माया, लोभ आदि)थी थाय छे.
१३९ प्र. प्रकृतिबंध कोने कहे छे?
उ. मोहादिजनक तथा ज्ञानादिघातक ते ते
स्वभाववाळा कार्माण पुद्गल स्कंधोनो आत्मा साथे संबंध
थवो, तेने प्रकृतिबंध कहे छे.
१४० प्र. प्रकृतिबंधना केटला भेद छे?
उ. आठ छेःज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय,
मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र अने अंतराय.
१४१ प्र. ज्ञानावरण कोने कहे छे?
उ. जे कर्म आत्माना ज्ञानगुणना पर्यायने +घाते
(घातमां निमित्त छे), तेने ज्ञानावरणकर्म कहे छे.
१४२ प्र. ज्ञानावरण कर्मना केटला भेद छे?
उ. पांच छेःमतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण,
+कर्म जीवना गुणोनो घात करे छे ते उपचारकथन छे;
खरेखर एक द्रव्य बीजानो घात करे नहि.