Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण अने केवलज्ञानावरण.
१४३ प्र. दर्शनावरण कर्म कोने कहे छे?
उ. जे आत्माना दर्शनगुणना पर्यायनो घात करे,
तेने दर्शनावरण कर्म कहे छे.
१४४ प्र. दर्शनावरण कर्मना केटला भेद छे?
उ. नव छेःचक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण,
अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा,
प्रचला, प्रचलाप्रचला अने स्त्यानगृद्धि.
१४५ प्र. वेदनीय कर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना फळथी जीवने आकुळता थाय अर्थात्
जे अव्याबाधगुणना पर्यायनो घात करे, तेने वेदनीय कर्म
कहे छे.
१४६ प्र. वेदनीय कर्मना केटला भेद छे?
उ. बे छेःशातावेदनीय अने अशातावेदनीय.
१४७ प्र. मोहनीय कर्म कोने कहे छे?
उ. जे आत्माना श्रद्धा अने चारित्र गुणना
पर्यायोनो घात करे, तेने मोहनीय कर्म कहे छे.
१४८ प्र. मोहनीय कर्मना केटला भेद छे?
उ. बे छेःदर्शनमोहनीय अने चारित्रमोहनीय.
१४९ प्र. दर्शनमोहनीय कर्म कोने कहे छे?
उ. आत्माना सम्यक्त्व पर्यायने जे घाते, तेने
दर्शनमोहनीय कर्म कहे छे.
१५० प्र. दर्शनमोहनीय कर्मना केटला भेद छे?
उ. त्रण छेःमिथ्यात्व, सम्यक्मिथ्यात्व अने
सम्यक्प्रकृति.
१५१ प्र. मिथ्यात्व कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी जीवने अतत्त्वश्रद्धान थाय,
तेने मिथ्यात्व कहे छे.
१५२ प्र. सम्यक्मिथ्यात्व कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी मळेला (मिश्र) परिणाम
होय के जेने न तो सम्यक्त्वरूप कही शकाय अने न तो
मिथ्यात्वरूप, तेने सम्यक्मिथ्यात्व कहे छे.
३२ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ३३