१५३ प्र. सम्यक्प्रकृति कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी सम्यक्त्वपर्यायना मूळनो
घात तो न थाय, परंतु चल, मलादिक दोष ऊपजे, तेने
सम्यक्प्रकृति कहे छे.
१५४ प्र. चारित्रमोहनीय कर्म कोने कहे छे?
उ. जे आत्माना चारित्रपर्यायनो घात करे, तेने
चारित्रमोहनीय कर्म कहे छे.
१५५ प्र. चारित्रमोहनीय कर्मना केटला भेद छे?
उ. बे छेः – कषाय अने नोकषाय (किंचित् कषाय).
१५६ प्र. कषायना केटला भेद छे?
उ. सोळ छेः – अनंतानुबंधी क्रोध, अनंतानुबंधी
मान, अनंतानुबंधी माया, अनंतानुबंधी लोभ;
अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, अप्रत्याख्यानावरण मान,
अप्रत्याख्यानावरण माया, अप्रत्याख्यानावरण लोभ;
प्रत्याख्यानावरण क्रोध, प्रत्याख्यानावरण मान,
प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण लोभ, संज्वलन
क्रोध, संज्वलन मान, संज्वलन माया, संज्वलन लोभ.
१५७ प्र. नोकषायना केटला भेद छे?
उ. नव छेः – हास्य, रति, अरति, शोक, भय,
जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद अने नपुंसकवेद.
१५८ प्र. अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ
कोने कहे छे?
उ. जे आत्माना स्वरूपाचरणचारित्रनो घात करे
तेने अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ कहे छे.
१५९ प्र. अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया,
लोभ कोने कहे छे?
उ. जे आत्माना देशचारित्रने घाते, तेने
अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ कहे छे.
१६० प्र. प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ
कोने कहे छे?
उ. जे आत्माना सकलचारित्रने घाते, तेने
प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ कहे छे.
१६१ प्र. संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ अने
३४ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ३५