Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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नोकषाय कोने कहे छे?
उ. जे आत्माना यथाख्यातचारित्रनो घात करे,
तेने संज्वलन अने नोकषाय कहे छे.
१६२ प्र. आयुकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्म आत्माने नारक, तिर्यंच, मनुष्य अने
देवना शरीरमां रोकी राखे तेने आयुकर्म कहे छे. अर्थात्
आयुकर्म आत्माना अवगाह गुणने घाते छे.
१६३ प्र. आयुकर्मना केटला भेद छे?
उ. चार भेद छेःनरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु
अने देवायु.
१६४ प्र. नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्म जीवने गति वगेरे जुदा जुदा रूपे
परिणमावे अथवा शरीरादिक बनावे; भावार्थनामकर्म
आत्माना सूक्ष्मत्वगुणने घाते छे.
१६५ प्र. नामकर्मना केटला भेद छे?
उ. त्राणु (९३), चारगति (नरक, तिर्यंच, मनुष्य
अने देव), पांचजाति(एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय,
चतुरेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय), पांच शरीर (औदारिक, वैक्रियिक,
आहारक, तैजस, अने कार्माण), त्रण अंगोपांग (औदारिक,
वैक्रियिक, आहारक), एक निर्माण कर्म, पांच बंधन कर्म
(औदारिकबंधन, वैक्रियिकबंधन, आहारकबंधन, तेजसबंधन
अने कार्माणबंधन), पांच संघात (औदारिक, विक्रियिक,
आहारक, तैजस, कार्माण), छ संस्थान (समचतुरस्र
संस्थान, न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान, स्वाति संस्थान, कुब्जक
संस्थान, वामन संस्थान, हुंडक संस्थान), छ संहनन
(वज्रर्षभनाराच संहनन, वज्रनाराच संहनन, नाराच
संहनन, अर्द्धनाराच संहनन, कीलिक संहनन अने
अंसप्राप्तसृपाटिका संहनन), पांच वर्ण कर्म (काळो, लीलो,
रातो, पीळो, धोळो), बे गंध कर्म (सुगंध, दुर्गंध), पांच रस
कर्म (खाटो, मीठो, कडवो, तूरो, तीखो), आठ स्पर्श (कठोर,
कोमल, हलको, भारे, ठंडो गरम, चीकणो, लूखो), चार
आनुपूर्व्य
(नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देवगत्यानुपूर्व्य),
अगुरुलघुत्व कर्म एक, उपघात कर्म एक, परघात कर्म एक,
आतापकर्म एक, उद्योतकर्म एक, बे विहायोगति, (एक
मनोज्ञ, बीजी अमनोज्ञ), उच्छ्वास एक, त्रस एक, स्थावर
३६ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ३७