एक, बादर एक, सूक्ष्म एक, पर्याप्त एक, अपर्याप्त एक,
प्रत्येक नामकर्म एक, एक साधारण नामकर्म, स्थिर नामकर्म
एक, अस्थिर नाम कर्म एक, शुभ नाम कर्म एक, अशुभ
नाम कर्म एक, सुभग नाम कर्म एक, दुर्भग नाम कर्म एक,
सुस्वर नाम कर्म एक, दुःस्वर नाम कर्म एक, आदेय नाम
कर्म एक, अनादेय नाम कर्म एक, यशकीर्ति नामकर्म एक,
अपयशःकीर्ति नामकर्म एक, तीर्थंकर नाम कर्म एक.
१६६ प्र. गति नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्म जीवनो आकार नारकी, तिर्यंच, मनुष्य
अने देवना समान बनावे.
१६७ प्र. जाति कोने कहे छे?
उ. अव्यभिचारी सद्रशताथी एकरूप करवावाळा
विशेषने जाति कहे छे. अर्थात् ते सद्रशधर्मवाळा पदार्थोने
ज ग्रहण करे छे.
१६८ प्र. जाति नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय,
चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय कहेवाय.
१६९ प्र. शरीर नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी आत्माना औदारिकादि शरीर
बने.
१७० प्र. निर्माण नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी अंगोपांगनी ठीक ठीक रचना
थाय, तेने निर्माणकर्म कहे छे.
१७० (क) प्र. आंगोपांग नामकर्म कोने कहे छे?
उ. औदारिक, वैक्रियिक, आहारक आंगोपांग, जेना
उदयथी अंग – उपांगोना भेद प्रगट थाय छे. (मस्तक, पीठ,
हृदय, बाहु, उदर, ढींचण, हाथ – पग तेने अंग कहे छे.
कपाळ, नासिका, होठ आदि उपांग छे).
(बृ. द्र. सं. पा – ४८)
१७१ प्र. बंधन नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी औदारिकादि शरीरोना
परमाणु परस्पर संबंधने प्राप्त थाय, तेने बंधन नामकर्म
कहे छे.
३८ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ३९