Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१७२ प्र. संघात नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी औदारिकादि शरीरनां
परमाणु छिद्ररहित एकताने प्राप्त थाय.
१७३ प्र. संस्थान नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरनी आकृति (सिकल)
बने, तेने संस्थान नामकर्म कहे छे.
१७४ प्र. समचतुरस्र संस्थान कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरनी आकृति उपर, नीचे
तथा मध्यमां सरखे भागे बने.
१७५ प्र. न्यग्रोधपरिमंडल कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी जीवनुं शरीर वडना वृक्षनी
माफक होय अर्थात् जेना नाभिथी नीचेना अंग नाना अने
उपरना अंग मोटा होय.
१७६ प्र. स्वाति संस्थान कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी नीचेनो भाग स्थूळ अथवा
मोटो होय अने उपरनो भाग पातळो (नानो) होय.
१७७ प्र. कुब्जक संस्थान कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी कूबडुं शरीर होय.
१७८ प्र. वामन संस्थान कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीर घणुं ज ठींगणुं होय.
१७९ प्र. हुंडक संस्थान कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरना अंग, उपांग कोई
खास आकारनां न होय; (बेडोळ होय).
१८० प्र. संहनन नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी हाडना बंधनविशेष थाय, तेने
संहनन नामकर्म कहे छे.
१८१ प्र. वज्रर्षभनाराच संहनन कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी वज्रनां हाड, वज्रना वेष्टन,
अने वज्रनीज खीलीओ होय.
१८२ प्र. वज्रनाराचसंहनन कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी वज्रना हाड अने वज्रनी
खीलीओ होय, परंतु वेष्टन वज्रनुं न होय.
४० ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ४१