Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१८३ प्र. नाराच संहनन कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी वेष्टन अने खीलीओ सहित
हाड होय.
१८४ प्र. अर्धनाराच संहनन कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी हाडोनी संधि अर्धकीलित
होय.
१८५ प्र. कीलक संहनन कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी हाडनी संधि परस्पर कीलित
होय.
१८६ प्र. असंप्राप्तासृपाटिका संहनन कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी जुदा जुदा हाड नसोथी
बंधायेला होय, पण परस्पर कीलित न होय.
१८७ प्र. वर्ण नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरमां रंग होय.
१८८ प्र. गंध नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरमां गंध होय.
१८९ प्र. रस नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरमां रस होय.
१९० प्र. स्पर्शनामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीरमां स्पर्श होय.
१९१ प्र. आनुपूर्वीनामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी आत्माना प्रदेश मरणना
पछी अने जन्मनी पहेलां रस्तामां अर्थात् विग्रहगतिमां
मरणना पहेलाना शरीरना आकारे रहे.
१९२ प्र. अगुरुलघु नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी शरीर, लोढाना गोळानी
माफक भारे अने आकडाना रूनी माफक हलकुं न होय.
१९३ प्र. उपघात नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी पोतानो घात ज करनार अंग
होय, तेने उपघात नामकर्म कहे छे.
१९४ प्र. परघात नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी बीजानो घात करवावाळा
अंग उपांग होय.
४२ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ४३