Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१९५ प्र. आताप नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी आतापरूप शरीर होय.
जेमकेःसूर्यनुं प्रतिबिंब.
१९६ प्र. उद्योत नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी उद्योतरूप शरीर थाय.
१९७ प्र. विहायोगति नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी आकाश गमन थाय; तेना
शुभ अने अशुभ एम बे भेद छे.
१९८ प्र. उच्छ्वास नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी श्वासोच्छ्वास लेवाय.
१९९ प्र. त्रस नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी द्वीन्द्रियादि जीवोमां जन्म
थाय.
२०० प्र. स्थावर नामकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी पृथ्वीकाय, अपकाय,
तेजसकाय, वायुकाय अने वनस्पतिकायमां जन्म थाय.
२०१ प्र. पर्याप्तिकर्म कोने कहे छे?
उ. जे कर्मना उदयथी पोतपोताना योग्य पर्याप्ति
पूर्ण थाय.
२०२ प्र. पर्याप्ति कोने कहे छे?
उ. आहारवर्गणा, भाषावर्गणा अने मनोवर्गणाना
परमाणुओने शरीरइन्द्रियादिरूप परिणमाववानी शक्तिनी
पूर्णताने पर्याप्ति कहे छे.
२०३ प्र. पर्याप्तिना केटला भेद छे?
उ. छःआहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रिय-
पर्याप्ति, श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति, भाषापर्याप्ति अने
मनःपर्याप्ति.
आहारपर्याप्तिआहारवर्गणाना परमाणुओने
खल अने रसभागरूप परिणमाववाना कारणभूत जीवनी
शक्तिनी पूर्णताने आहारपर्याप्ति कहे छे.
शरीरपर्याप्तिजे परमाणुओने खलरूप
परिणमाव्या हता. तेमना हाड वगेरे कठिन अवयवरूप अने
जेने रस रूप परिणमाव्या हता, तेमना रुधिरादिक द्रव्यरूप
४४ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ४५