Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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८६ प्रकृति बाद करवाथी बाकी रही ६२ प्रकृति ते पुद्गल
विपाकी छे.)
२४४ प्र. पाप प्रकृति केटली अने कई कई छे?
उ. सो (१००) छेःघातिया प्रकृति ४७, अशाता
वेदनीय १, नीचगोत्र १, नरकायु १ अने नामकर्मनी ५०
(नरकगति १, नरकगत्यानुपूर्वी १, तिर्यग्गति १,
तिर्यग्गत्यानुपूर्वी १, जातिमांथी आदिनी ४, संस्थानना
अन्तनी ५, संहनन अन्तनी ५, स्पर्शादिक २०, उपघात
१, अप्रशस्त विहायोगति १, स्थावर १, सूक्ष्म १,
अपर्याप्ति १, अनादेय १, अपयशःकीर्ति १, अशुभ १,
दुर्भग १, दुःस्वर १, अस्थिर १, साधारण १) ए सर्व
मळीने १०० पाप प्रकृति छे.
२४५ प्र. पुण्य प्रकृति केटली अने कई कई छे?
उ. अडसठ (६८) छेःकर्मनी समस्त प्रकृति
१४८ छे, जेमांथी १०० पाप प्रकृति बाद करवाथी बाकी
रहेल ४८ प्रकृति अने नामकर्मनी स्पर्शादि २० प्रकृति,
पुण्य अने पाप ए बंनेमां गणाय छे; केमके ते वीशे (२०)
प्रकृति स्पर्शादि कोईने इष्ट अने कोईने अनिष्ट होय छे.
ते माटे ४८मां स्पर्शादि २० प्रकृति मेळववाथी ६८ पुण्य
प्रकृति थाय छे.
२४६ प्र. स्थितिबंध कोने कहे छे?
उ. कर्मोमां आत्मानी साथे रहेवानी मर्यादानुं पडवुं
तेने.
२४७ प्र. आठे कर्मोनी उत्कृष्ट स्थिति केटली केटली
छे?
उ. ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, अंतराय, ए
चारे कर्मोनी उत्कृष्ट स्थिति त्रीस त्रीस क्रोडाक्रोडी सागरनी
छे, मोहनीय कर्मनी सित्तेर क्रोडाक्रोडी सागरनी छे.
नामकर्मनी अने गोत्रकर्मनी वीश वीश (२०) क्रोडाक्रोडी
सागरनी छे अने आयुकर्मनी तेत्रीस (३३) सागरनी छे.
२४८ प्र. आठे कर्मोनी जघन्य स्थिति केटली केटली
छे?
उ. वेदनीय कर्मनी बार (१२) मुहूर्त, नाम तथा
गोत्रकर्मनी आठ (८) मुहूर्तनी अने बाकीनां समस्त कर्मोनी
अंतर्मुहूर्तनी जघन्य स्थिति छे.
५६ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ५७