Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२५९ प्र. उदय कोने कहे छे?
उ. स्थितिने पूरी करीने कर्मोना फल आपवाने उदय
कहे छे.
२६० प्र. उदीरणा कोने कहे छे?
उ. स्थिति पूरी कर्या विना ज कर्मनां फळ आववाने
उदीरणा कहे छे.
२६१ प्र. उपशम कोने कहे छे?
उ. द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावना निमित्तथी कर्मनी
शक्तिनी अनुद्भूतिने उपशम कहे छे.
२६२ प्र. उपशमना केटला भेद छे?
उ. बे छेःअंतःकरणरूप उपशम अने
सदवस्थारूप उपशम.
२६३ प्र. अंतःकरणरूप उपशम कोने कहे छे?
उ. आगामी काळमां उदय आववा योग्य कर्मना
परमाणुओने आगळपाछळ उदय आववा योग्य करवां,
तेने अंतःकरणरूप उपशम कहे छे.
२६४ प्र. सदवस्थारूप उपशम कोने कहे छे?
उ. वर्तमान समयने छोडीने आगामी काळमां उदय
आववावाळां कर्मोनुं सत्तामां रहेवुं तेने सदवस्थारूप उपशम
कहे छे.
२६५ प्र. क्षय कोने कहे छे?
उ. कर्मनी आत्यंतिक निवृत्तिने क्षय कहे छे.
२६६ प्र. क्षयोपशम कोने कहे छे?
उ. वर्तमान निषेकमां सर्वघाती स्पर्द्धकोनो
उदयाभावी क्षय तथा देशघाती स्पर्द्धकोनो उदय अने
आगामी काळमां उदय आववावाळा निषेकोनो सदवस्थारूप
उपशम एवी कर्मनी अवस्थाने क्षयोपशम कहे छे.
२६७ प्र. निषेक कोने कहे छे?
उ. एक समयमां कर्मना जेटलां परमाणुओ
उदयमां आवे ते सर्वना समूहने निषेक कहे छे.
२६८ प्र. स्पर्द्धक कोने कहे छे?
उ. वर्गणाओना समूहने स्पर्द्धक कहे छे.
६० ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ६१