Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 38 of 110

 

background image
गुणहानिआयाम ८ थी गुणवाथी १०० थाय छे. ते
१००नो भाग विवक्षित प्रथम गुणहानिना द्रव्य ३२००मां
उमेरवाथी प्रथम गुणहानिसंबंधी चय ३२ आव्या. एवी
रीते द्वितीय गुणहानिना चयनुं परिमाण १६, तृतीयनुं
परिणाम ८, चतुर्थनुं ४, पंचमनुं २ अने अंतिम
गुणहानिना चयनुं परिमाण १ जाणवुं.
२८८ प्र. अनुभागनी रचनानो क्रम क्यो छे?
उ. द्रव्यनी अपेक्षाथी जे रचना उपर बतावी छे
तेमां प्रत्येक गुणहानिना प्रथमादि समय संबंधी द्रव्यने
वर्गणा कहे छे. अने ते वर्गणाओमां जे परमाणु छे, तेने
वर्ग कहे छे. प्रथम गुणहानिनी प्रथम वर्गणामां जे ५१२
वर्ग छे, तेमां अनुभागशक्तिना अविभागप्रतिच्छेद समान
छे. अने ते द्वितीयादि वर्गणाओना वर्गोना अविभाग-
प्रतिच्छेदोनी अपेक्षाए सर्वेथी न्यून अर्थात् जघन्य छे.
द्वितीयादि वर्गणाना वर्गोमां एक एक अविभागप्रतिच्छेदनी
अधिकता क्रमथी जे वर्गणापर्यंत एक एक अविभाग-
प्रतिच्छेद वधे त्यां सुधीनी वर्गणाओना समूहनुं नाम एक
स्पर्द्धक छे अने जे वर्गणाना वर्गोमां युगपत् (एक साथे)
अनेक अविभागप्रतिच्छेदोनी वृद्धि थईने प्रथम वर्गणाना
वर्गोना अविभागप्रतिच्छेदोनी संख्याथी बमणी संख्या थई
जाय, त्यांथी बीजा स्पर्द्धकनो प्रारंभ समजवो. एवी ज
रीते जे जे वर्गणाओना वर्गोमां प्रथम वर्गणाना वर्गोना
अविभागप्रतिच्छेदोनी संख्याथी त्रणगुणा, चारगुणा आदि
अविभागप्रतिच्छेद होय, त्यांथी त्रीजो, चोथो आदि
स्पर्द्धकोनो प्रारंभ समजवो. एवी रीते एक गुणहानिमां
अनेक स्पर्द्धक थाय छे.
२८९ प्र. आस्रव कोने कहे छे?
उ. बंधना कारणने आस्रव कहे छे.
२९० प्र. आस्रवना केटला भेद छे?
उ. चार छेःद्रव्यबंधनुं निमित्तकारण, द्रव्यबंधनुं
उपादानकारण, भावबंधनुं निमित्तकारण अने भावबंधनुं
उपादानकारण
२९१ प्र. कारण कोने कहे छे?
उ. कार्यनी उत्पादक सामग्रीने कारण कहे छे.
६८ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ६९