३०० प्र. द्रव्यबंधनुं निमित्त कारण शुं छे?
उ. आत्माना योगकषायरूप परिणाम द्रव्यबंधनुं
निमित्तकारण छे.
३०१ प्र. द्रव्यबंधनुं उपादानकारण शुं छे?
उ. बंध थवाना पूर्व क्षणमां बंध थवाना सन्मुख
कार्माण स्कंधने द्रव्यबंधनुं उपादान कारण कहे छे.
३०२ प्र. भावबंधनुं निमित्तकारण शुं छे?
उ. उदय अने उदीरणा अवस्थाने प्राप्त पूर्वबद्ध
कर्म भावबंधनुं निमित्त कारण छे.
३०३ प्र. भावबंधनुं उपादानकारण शुं छे?
उ. भावबंधना विवक्षित समयथी अनंतर पूर्व
क्षणवर्ती योग कषायरूप आत्माना पर्याय विशेषने
भावबंधनुं उपादानकारण कहे छे.
३०४ प्र. भावास्रव कोने कहे छे?
उ. द्रव्यबंधना निमित्त कारण अथवा भावबंधना
उपादानकारणने भावास्रव कहे छे.
३०५ प्र. द्रव्यास्रव कोने कहे छे?
उ. द्रव्यबंधना उपादानकारण अथवा भावबंधना
निमित्तकारणने द्रव्यास्रव कहे छे.
३०६ प्र. प्रकृतिबंध अने अनुभागबंधमां शो भेद
छे?
उ. प्रत्येक प्रकृतिना भिन्नभिन्न उपादान शक्ति
युक्त अनेक भेदरूप कार्माण स्कंधनो आत्मानी साथे संबंध
थवाने प्रकृतिबंध कहे छे. अने ते ज स्कंधोमां फळदान
शक्तिना तारतम्यने (न्यूनाधिकताने) अनुभागबंध कहे छे.
३०७ प्र. समस्त प्रकृतिओना बंधनुं कारण
सामान्यताथी योग छे अथवा तेमां कांई विशेषता छे?
उ. जेवी रीते भिन्न भिन्न उपादान शक्तियुक्त
नाना प्रकारना भोजनोने मनुष्य हस्त द्वारा इच्छा
विशेषपूर्वक ग्रहण करे छे अने विशेष इच्छाना अभावमां
उदर पूर्ण करवाने माटे सामान्य भोजननुं ग्रहण करे छे,
तेवी ज रीते आ जीव विशेष कषायना अभावमां योग
मात्रथी केवळ शातावेदनीयरूप कर्मने ग्रहण करे छे, परंतु
७२ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ७३