Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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ते योग जो कोई कषाय विशेषथी अनुरंजित होय तो
अन्यान्य प्रकृतिओनो पण बंध करे छे.
३०८ प्र. प्रकृतिबंधना कारणत्वनी अपेक्षाथी
आस्रवना केटला भेद छे?
उ. पांच भेद छेःमिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद,
कषाय अने योग.
३०९ प्र. मिथ्यात्व कोने कहे छे?
उ. मिथ्यात्व प्रकृतिना उदयथी अदेवमां (कुदेवमां)
देवबुद्धि, अतत्त्वमां तत्त्वबुद्धि, अधर्म (कुधर्म)मां धर्मबुद्धि,
इत्यादि विपरीताभिनिवेशरूप जीवना परिणामने मिथ्यात्व
कहे छे.
३१० प्र. मिथ्यात्वना केटला भेद छे?
उ. पांच भेद छेःएकांतिक मिथ्यात्व, विपरीत
मिथ्यात्व, सांशयिक मिथ्यात्व, अज्ञानिक मिथ्यात्व अने
वैनयिक मिथ्यात्व.
३११ प्र. एकांतिक मिथ्यात्व कोने कहे छे?
उ. पदार्थनुं स्वरूप अनेक धर्मोवाळुं होवा छतां तेने
सर्वथा एक ज धर्मवाळो मानवो ते. जेमके आत्माने सर्वथा
क्षणिक अथवा सर्वथा नित्य मानवो ते.
३१२ प्र. विपरीत मिथ्यात्व कोने कहे छे?
उ. आत्मानुं स्वरूप जे प्रकारे छे तेथी ऊंधुं माने
तेने एटले के तेथी ऊंधी रुचिने विपरीत मिथ्यात्व कहे छे;
जेमके शरीरने आत्मा माने, सग्रंथने निर्ग्रंथ माने, केवळीना
स्वरूपने विपरीतपणे माने.
३१३ प्र. सांशयिक मिथ्यात्व कोने कहे छे?
उ. आत्मा पोताना कार्यनो कर्ता थतो हशे के
परवस्तुना कार्यनो कर्ता थतो हशे, ए वगेरे प्रकारे संशय
रहेवो ते.
३१४ प्र. अज्ञानिक मिथ्यात्व कोने कहे छे?
उ. ज्यां हिताहित विवेकनो कांई पण सद्भाव न
होय, तेने अज्ञानिकमिथ्यात्व कहे छे. जेमकेपशु वधने
अथवा पापने धर्म समजवो.
३१५ प्र. वैनयिक मिथ्यात्व कोने कहे छे?
उ. समस्त देव अने समस्त मतोमां समदर्शीपणुं
७४ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ७५