Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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मानवुं, तेने वैनयिक मिथ्यात्व कहे छे.
३१६ प्र. अविरति कोने कहे छे?
उ. हिंसादिक पापोमां तथा इन्द्रिय अने मनना
विषयोमां प्रवृत्ति थवाने अविरति कहे छे.
३१७ प्र. अविरतिना केटला भेद छे?
उ. त्रण भेद छेअनंतानुबंधी कषायोदयजनित,
अप्रत्याख्यानावरण, कषायोदयजनित अने प्रत्याख्यानावरण
कषायोदयजनित.
३१८ प्र. प्रमाद कोने कहे छे?
उ. संज्वलन अने नोकषायना तीव्र उदयथी
निरतिचार चारित्र पाळवामां अनुत्साहने तथा स्वरूपनी
असावधानताने प्रमाद कहे छे.
३१९ प्र. प्रमादना केटला भेद छे?
उ. पंदर भेद छेःविकथा ४ (स्त्रीकथा, राष्ट्रकथा,
भोजनकथा, राजकथा), कषाय ४ (संज्वलनना तीव्र
उदयजनित क्रोध, मान, माया, लोभ), इन्द्रियोना विषय ५,
निद्रा एक अने स्नेह एक
एम पंदर प्रमाद छे.
३२० प्र. कषाय कोने कहे छे?
उ. संज्वलन अने नोकषायना मंद उदयथी
प्रादुर्भूत आत्माना परिणामविशेषने कषाय कहे छे.
३२१ प्र. योग कोने कहे छे?
उ. मनोवर्गणा अथवा कायवर्गणा (आहारवर्गणा
तथा कार्माणवर्गणा) अने वचनवर्गणाना अवलंबनथी कर्म,
नोकर्मने ग्रहण करवानी शक्तिविशेषने योग कहे छे.
३२२ प्र. योगना केटला भेद छे?
उ. पंदर भेद छेमनोयोग ४ (सत्य मनोयोग,
असत्य मनोयोग, उभय मनोयोग अने अनुभय
मनोयोग), काययोग ७ (औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियक,
वैक्रयिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र अने कार्माण),
वचनयोग ४ (सत्यवचनयोग, असत्यवचनयोग,
उभयवचनयोग, अनुभयवचनयोग).
३२३ प्र. मिथ्यात्वनी प्रधानताथी कई कई
प्रकृतिओनो बंध थाय छे?
उ. मिथ्यात्वनी प्रधानताथी १६ प्रकृतिओनो बंध
७६ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ७७