Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 44 of 110

 

background image
देवगत्यानुपूर्वी १, रूप १, रस १, गंध १, स्पर्श १,
अगुरुलघु १, उपघात १, परघात १, उच्छ्वास १, त्रस १,
बादर १, पर्याप्त १, प्रत्येक १, स्थिर १, शुभ १, सुभग
१, सुस्वर १, आदेय १, हास्य १, रति १, जुगुप्सा १, भय
१, पुरुषवेद १, संज्वलन क्रोध १, मान १, माया १, लोभ
१, मतिज्ञानावरण १, श्रुतज्ञानावरण १, अवधिज्ञानावरण
१, मनःपर्ययज्ञानावरण १, केवलज्ञानावरण १, चक्षुदर्शना-
वरण १, अचक्षुदर्शनावरण १, अवधिदर्शनावरण १, केवल-
दर्शनावरण १, दानान्तराय १, भोगान्तराय १, उपभोगा-
न्तराय १, वीर्यान्तराय १, लाभान्तराय १, यशस्कीर्ति १,
अने उच्चगोत्र १ ए अठ्ठावन प्रकृतिओनो बंध थाय छे.
३२९ प्र. योगना निमित्तथी कई कई प्रकृतिओनो
बंध थाय छे?
उ. एक शाता वेदनीयनो बंध थाय छे.
३३० प्र. कर्मप्रकृति सर्वे १४८ छे अने कारण मात्र
१२०नां लख्यां, तो पछी २८ प्रकृतिओनुं शुं थयुं?
उ. स्पर्शादि २०नी जग्याए ४नुं ग्रहण करेलुं छे,
ए कारणथी १६ तो ए घटी, अने पांचे शरीरना पांचे
बंधन तथा पांचे संघातनुं ग्रहण करेलुं नथी, ते कारणथी
ते दश घटी अने सम्यग्मिथ्यात्व तथा समकित मोहनीय
ए बे प्रकृतिओनो बंध थतो नथी; केमके सम्यग्द्रष्टि जीव
पूर्वबद्ध मिथ्यात्व प्रकृतिना त्रण खंड करे छे. त्यारे आ बे
प्रकृतिओनो प्रादुर्भाव थाय छे. ए कारणथी ए बे प्रकृतिओ
घटी गई.
३३१ प्र. द्रव्यास्रवना केटला भेद छे?
उ. बे छेःएक साम्परायिक अने बीजो इर्यापथ.
३३२ प्र. सांपरायिक आस्रव कोने कहे छे?
उ. जे कर्म परमाणु जीवना कषायभावोना
निमित्तथी आत्मामां कंईक वखत माटे स्थितिने प्राप्त थाय,
तेना आस्रवने सांपरायिक आस्रव कहे छे.
३३३ प्र. इर्यापथ आस्रव कोने कहे छे?
उ. जे कर्म परमाणुओनो बंध, उदय अने निर्जरा
एक ज समयमां थाय, तेना आस्रवने इर्यापथ आस्रव कहे
छे.
८० ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ८१