Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 45 of 110

 

background image
३३४ प्र. ए बन्ने प्रकारना आस्रवोना स्वामी कोण
छे?
उ. सांपरायिक आस्रवनो स्वामी कषायसहित अने
इर्यापथ आस्रवनो स्वामी कषायरहित आत्मा थाय छे.
३३५ प्र. पुण्यास्रव अने पापास्रवनुं कारण शुं छे?
उ. शुभयोगथी पुण्यास्रव अने अशुभयोगथी
पापास्रव थाय छे.
३३६ प्र. शुभयोग अने अशुभयोग कोने कहे छे?
उ. शुभ परिणामथी उत्पन्न थयेल योगने शुभयोग
कहे छे अने अशुभ परिणामथी उत्पन्न थयेल योगने
अशुभयोग कहे छे.
३३७ प्र. जे वखते जीवने शुभयोग थाय छे, ते
वखते पापप्रकृतिओनो आस्रव थाय छे के नहि?
उ. थाय छे.
३३८ प्र. जो जीवने पापप्रकृतिओनो आस्रव थाय
छे, तो शुभयोग पापास्रवनुं पण कारण ठर्युं?
उ. शुभयोग पापास्रवनुं कारण ठरतुं नथी; कारण
के जे वखते जीवमां शुभयोग थाय छे ते वखते पुण्य
प्रकृतिओमां स्थिति
अनुभाग अधिक पडे छे, अने पाप
प्रकृतिओमां ओछां पडे छे. तेवी ज रीते ज्यारे अशुभयोग
थाय छे त्यारे पाप प्रकृतिओमां स्थिति
अनुभव अधिक पडे
छे अने पुण्य प्रकृतिओमां ओछां. दशाध्याय तत्त्वार्थसूत्रना
छठ्ठा अध्यायमां ज्ञानावरणादि प्रकृतिओना आस्रवना कारण
जे तत्प्रदोषनिह्नवादिक कहेलां छे, तेनो अभिप्राय ए छे के
ते ते भावोथी ते ते प्रकृतिओमां स्थिति, अनुभाग अधिक
अधिक पडे छे. बीजुं जे ज्ञानावरणादिक पापप्रकृतिओना
आस्रव दशमा गुणस्थान सुधी सिद्धान्तशास्त्रमां कह्या छे.
तेमां विरोध आवशे अथवा त्यां शुभयोगना अभावनो
प्रसंग आवशे; कारण के शुभयोग दशमा गुणस्थानथी
पहेलां पहेलां ज थाय छे.
बीजो अध्याय समाप्तः
८२ ][ अध्यायः २श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ८३