Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration). Trijo Adhyay.

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त्रीजो अधयाय
३३९ प्र. जीवना असाधारण भाव केटला छे?
उ. पांच छेःऔपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक,
औदयिक अने पारिणामिक.
३४० प्र. औपशमिकभाव कोने कहे छे?
उ. कोई कर्मोना उपशमथी थाय, तेने औपशमिक-
भाव कहे छे.
३४१ प्र. क्षायिकभाव कोने कहे छे?
उ. कर्मोनो सर्वथा नाश थवाथी आत्मानो अत्यंत
शुद्धभाव थई जाय छे, तेने क्षायिकभाव कहे छे.
३४२ प्र. क्षायोपशमिकभाव कोने कहे छे?
उ. जे कर्मोना क्षयोपशमथी थाय, तेने
क्षायोपशमिकभाव कहे छे.
३४३ प्र. औदयिकभाव कोने कहे छे?
उ. कर्मोनो उदय आववाथी अर्थात् द्रव्य, क्षेत्र,
काळ, भावरूप निमित्तथी कर्म ज्यारे पोतानुं फळ आपे छे,
तेने उदय कहे छे. कर्मोना उदयथी जे आत्मानो भाव थाय
छे, तेने औदयिकभाव कहे छे.
३४४ प्र. पारिणामिकभाव कोने कहे छे?
उ. जे कर्मोना उपशम, क्षय, क्षयोपशम, अथवा
उदयनी अपेक्षा राख्या विना जीवनो स्वभाव मात्र होय,
तेने पारिणामिकभाव कहे छे.
३४५ प्र. औपशमिकभावना केटला भेद छे?
उ. बे भेद छेःसम्यक्त्वभाव अने चारित्रभाव.
३४६ प्र. क्षायिकभावना केटला भेद छे?
उ. नवभेद छेःक्षायिकसम्यक्त्व, क्षायिकचारित्र,
क्षायिकदर्शन, क्षायिकज्ञान, क्षायिकदान, क्षायिकलाभ,
क्षायिकभोग, क्षायिकउपभोग अने क्षायिकवीर्य.
३४७ प्र. क्षायोपशमिकभावना केटला भेद छे?
उ. १८ छेःसम्यक्त्व, चारित्र, चक्षुदर्शन,
अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, देशसंयम, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान,
अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान,
कुअवधिज्ञान, दान, लाभ, भोग, उपभोग अने वीर्य.
श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ८५