३४८ प्र. औदयिकभाव केटला छे?
उ. २१ छेः – गति ४, कषाय ४, लिंग ३,
मिथ्यादर्शन १, अज्ञान १, असंयम १, असिद्धत्व १,
लेश्या ६, (पीत, पद्म, शुक्ल, कृष्ण, नील, कापोत)
३४९ प्र. पारिणामिकभाव केटला छे?
उ. त्रण छेः – जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व.
३५० प्र. लेश्या कोने कहे छे?
उ. कषायना उदयथी अनुरंजित योगोनी प्रवृत्तिने
भावलेश्या कहे छे अने शरीरना पीत पद्मादिवर्णोने
द्रव्यलेश्या कहे छे.
३५१ प्र. उपयोग कोने कहे छे?
उ. जीवना लक्षणरूप चैतन्यानुविधायी परिणामने
उपयोग कहे छे.
३५२ प्र. उपयोगना केटला भेद छे?
उ. बे भेद छेः – दर्शनोपयोग अने ज्ञानोपयोग.
३५३ प्र. दर्शनोपयोगना केटला भेद छे?
उ. चार छेः – चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन
अने केवळदर्शन.
३५४ प्र. ज्ञानोपयोगना केटला भेद छे?
उ. आठ छेः – मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान,
मनःपर्ययज्ञान, केवळज्ञान, कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान अने
कुअवधिज्ञान.
३५५ प्र. संज्ञा कोने कहे छे?
उ. अभिलाषाने (वांच्छाने) संज्ञा कहे छे.
३५६ प्र. संज्ञाना केटला भेद छे?
उ. चार छेः – आहार, भय, मैथुन, अने परिग्रह.
३५७ प्र. मार्गणा कोने कहे छे?
उ. जे जे धर्मविशेषोथी जीवोनुं अन्वेषण (शोध)
कराय, ते ते धर्मविशेषोने मार्गणा कहे छे.
३५८ प्र. मार्गणाना केटला भेद छे?
उ. १४ छेः – गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय,
ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञित्व,
आहार.
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