Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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निर्वृत्तिनो उपकार करे, तेने बाह्योपकरण कहे छे.
३७२ प्र. भावेन्द्रिय कोने कहे छे?
उ. लब्धि अने उपयोगने भावेन्द्रिय कहे छे.
३७३ प्र. लब्धि कोने कहे छे?
उ. ज्ञानावरण कर्मना क्षयोपशमने लब्धि कहे छे.
३७४ प्र. उपयोग कोने कहे छे?
उ. क्षयोपशम हेतुवाळा चेतनाना परिणामविशेषने
उपयोग कहे छे.
३७५ प्र. द्रव्येन्द्रियना केटला भेद छे?
उ. पांच छेःस्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु अने श्रोत्र.
३७६ प्र. स्पर्शन इन्द्रिय कोने कहे छे?
उ. जे द्वारा आठ प्रकारना स्पर्शो (शीत, उष्ण,
रुक्ष, चिकणां, कठोर, कोमल, हलका, भारे)नुं ज्ञान थाय,
तेने स्पर्शेन्द्रिय कहे छे.
३७७ प्र. रसना इन्द्रिय कोने कहे छे?
उ. जे द्वारा पांच प्रकारना (तीखो, कडवो, कषायेलो,
खाटो, मीठो) रसोना स्वादनुं ज्ञान थाय, तेने रसनेन्द्रिय
कहे छे.
३७८ प्र. घ्राणेन्द्रिय कोने कहे छे?
उ. जे द्वारा बे प्रकारनी गंध (सुगंध अने दुर्गंध)नुं
ज्ञान थाय, तेने घ्राणेन्द्रिय कहे छे.
३७९ प्र. चक्षुरिन्द्रिय कोने कहे छे?
उ. जे द्वारा पांच प्रकारना वर्णोनुं (धोळो, पीळो,
लीलो, लाल अने काळा रंगनुं) ज्ञान थाय, तेने चक्षुरिन्द्रिय
कहे छे.
३८० प्र. श्रोत इन्द्रिय कोने कहे छे?
उ. जे द्वारा सात प्रकारना स्वरोनुं ज्ञान थाय, तेने
श्रोत्रेन्द्रिय कहे छे.
३८१ प्र. क्या क्या जीवोने कई कई इन्द्रियो होय
छे?
उ. पृथ्वी, अप्, तेज, वायु अने वनस्पति ए
जीवोने एक स्पर्शन इन्द्रिय ज होय छे. करमीया वगेरे
जीवोने स्पर्शन अने रसना बे इन्द्रियो होय छे. कीडी
९० ][ अध्यायः ३श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ९१