Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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वगेरे जीवोने स्पर्शन, रसना अने घ्राण (नाक) ए त्रण
इन्द्रियो होय छे. माखी, भमरा वगेरे जीवोने स्पर्शन,
रसना, नाक अने आंखो ए चार इन्द्रियो होय छे. घोडा
आदि चारपगां जनावर
पशु, मनुष्य, देव अने नारकी
जीवोने स्पर्शन, जीभ, नाक, आंखो अने कान ए पांचे
इन्द्रियो होय छे.
३८२ प्र. काय कोने कहे छे?
उ. त्रस, स्थावर, नामकर्मना उदयथी आत्माना
प्रदेश प्रचय (समूह)ने काय कहे छे.
३८३ प्र. त्रस कोने कहे छे?
उ. त्रसनामा नामकर्मना उदयथी द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय,
चतुरिन्द्रिय अने पंचेन्द्रियमां जन्म लेवावाळा जीवोने त्रस
कहे छे.
३८४ प्र. स्थावर कोने कहे छे?
उ. स्थावरनामा नामकर्मना उदयथी पृथ्वी, अप्,
तेज, वायु अने वनस्पतिमां जन्म लेवावाळा जीवोने स्थावर
कहे छे.
३८५ प्र. बादर कोने कहे छे?
उ. पृथ्वी आदिथी जे रोकाई जाय अथवा बीजाने
रोके, तेने बादर कहे छे.
३८६ प्र. सूक्ष्म कोने कहे छे?
उ. जे पोते पृथ्वी आदिकथी रोकाय नहि अने
बीजा पदार्थोने रोके नहि, तेने सूक्ष्म कहे छे.
३८७ प्र. वनस्पतिना केटला भेद छे?
उ. बे छेःप्रत्येक अने साधारण.
३८८ प्र. प्रत्येक वनस्पति कोने कहे छे?
उ. एक शरीरनो जे एक ज स्वामी होय, तेने
प्रत्येक वनस्पति कहे छे.
३८९ प्र. साधारण वनस्पति कोने कहे छे?
उ. जे जीवोना आहार श्वासोच्छ्वास, आयु अने
काय ए साधारण (समान अथवा एक), तेने साधारण
वनस्पति कहे छे. जेमकेः
कंदमूलादिक.
३९० प्र. प्रत्येक वनस्पतिना केटला भेद छे?
उ. बे छेःसप्रतिष्ठित प्रत्येक अने अप्रतिष्ठित
प्रत्येक.
९२ ][ अध्यायः ३श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ९३