३९१ प्र. सप्रतिष्ठित प्रत्येक कोने कहे छे?
उ. जे प्रत्येक वनस्पतिना आश्रय अनेक साधारण
वनस्पति शरीर होय, तेने सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहे छे.
३९२ प्र. अप्रतिष्ठित प्रत्येक कोने कहे छे?
उ. जे प्रत्येक वनस्पतिने आश्रय कोईपण साधारण
वनस्पति न होय, तेने अप्रतिष्ठित प्रत्येक कहे छे.
३९३ प्र. साधारण वनस्पति सप्रतिष्ठित प्रत्येक
वनस्पतिमां ज होय छे के कोई बीजीमां होय छे?
उ. पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, केवळीभगवान,
आहारक शरीर, देव, नारकी ए आठे सिवाय सर्व संसारी
जीवोना शरीर साधारण अर्थात् निगोदनो आश्रय छे.
३९४ प्र. साधारण वनस्पतिना (निगोदना) केटला
भेद छे?
उ. बे भेदः – नित्यनिगोद अने इतरनिगोद.
३९५ प्र. नित्यनिगोद कोने कहे छे?
उ. जेणे कोई वखत पण निगोद सिवाय बीजी
पर्याय प्राप्त करी नथी अथवा कदी निगोद सिवाय बीजी
पर्याय प्राप्त करशे पण नहि, तेने नित्यनिगोद कहे छे.
३९६ प्र. इतरनिगोद कोने कहे छे?
उ. जे निगोदथी नीकळीने बीजा पर्याय प्राप्त करी
फरीने निगोदमां उत्पन्न थाय, तेने इतरनिगोद कहे छे.
३९७ प्र. बादर अने सूक्ष्म क्या क्या जीव छे?
उ. पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, नित्यनिगोद,
इतरनिगोद – ए छ बादर अने सूक्ष्म बन्ने प्रकारना होय
छे. बाकीना सर्वे जीव बादर ज होय छे. सूक्ष्म होता नथी.
३९८ प्र. योग कोने कहे छे?
उ. पुद्गलविपाकी शरीर अने अंगोपांगनामा
नामकर्मना उदयथी मनोवर्गणा तथा वचनवर्गणा तथा
कायवर्गणाना अवलंबनथी, कर्म – नोकर्मने ग्रहण करवानी
जीवनी शक्तिविशेषने भावयोग कहे छे. ते ज भावयोगना
निमित्तथी आत्मप्रदेशना परिस्पंदनने (चंचल होवाने)
द्रव्ययोग कहे छे.
३९९ प्र. योगना केटला भेद छे?
उ. पंदर छेः – मनोयोग ४, वचनयोग ४ अने
काययोग ७.
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