Jain Siddhant Praveshika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३८ प्र. पर्यायना केटला भेद छे ?
उ. बे छेःव्यंजनपर्याय अने अर्थपर्याय.
३९ प्र. व्यंजनपर्याय कोने कहे छे ?
उ. प्रदेशत्व गुणना विकारने व्यंजनपर्याय कहे छे.
४० प्र. व्यंजनपर्यायना केटला भेद छे ?
उ. बे छेःस्वभावव्यंजनपर्याय अने विभावव्यंजन-
पर्याय.
४१ प्र. स्वभावव्यंजनपर्याय कोने कहे छे?
उ. बीजाना निमित्त विना जे व्यंजनपर्याय होय,
जेमकेजीवनी सिद्धपर्याय.
४२ प्र. विभावव्यंजनपर्याय कोने कहे छे ?
उ. बीजाना निमित्तथी जे व्यंजनपर्याय होय,
जेमकेजीवनी मनुष्य-नारकादि पर्याय.
४३ प्र. अर्थपर्याय कोने कहे छे ?
उ. प्रदेशत्व गुणना सिवाय अन्य समस्त गुणोना
विकारने अर्थपर्याय कहे छे.
४४ प्र. अर्थपर्यायना केटला भेद छे ?
उ. बे छेःस्वभावअर्थपर्याय अने विभावअर्थपर्याय.
४५ प्र. स्वभावअर्थपर्याय कोने कहे छे ?
उ. बीजाना निमित्त विना जे अर्थपर्याय होय, तेने
स्वभावअर्थपर्याय कहे छे. जेमकेजीवनुं केवळज्ञान.
४६ प्र. विभावअर्थपर्याय कोने कहे छे ?
उ. बीजाना निमित्तथी जे अर्थपर्याय होय, तेने
विभावअर्थपर्याय कहे छे. जेमकेजीवना राग, द्वेष आदि.
४७ प्र. उत्पाद कोने कहे छे ?
उ. द्रव्यमां नवीन पर्यायनी प्राप्तिने उत्पाद कहे छे.
४८ प्र. व्यय कोने कहे छे ?
उ. द्रव्यना पूर्व पर्यायना त्यागने व्यय कहे छे.
४९ प्र. ध्रौव्य कोने कहे छे ?
उ. प्रत्यभिज्ञानना कारणभूत द्रव्यनी कोई पण
अवस्थानी नित्यताने ध्रौव्य कहे छे.
१० ][ अध्यायः १श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका ][ ११