Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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लक्षणोनो समन्वय सहज थई जाय छे अने तेना भेदोना स्वरूपनो पण सामान्य परिचय प्राप्त
थाय छे.
आ रीते आ ग्रंथमां चर्चित बधाय विषय अथवा प्रमेय ग्रंथकर्तानुं विशाळ अध्ययन,
अनुपम प्रतिभा अने सैद्धान्तिक अनुभवनुं सफळ परिणाम छे अने ते ग्रंथकर्तानी जे आंतरिक
भद्रता तेनी महत्तानुं द्योतक छे.
आ ग्रंथनी खास विशेषता ए छे के तेमां गंभीर तेम ज दुरूह चर्चाने अति सरळ शब्दोमां
अनेक द्रष्टांत अने युक्तिओ द्वारा समजाववानो प्रयत्न करवामां आव्यो छे अने पोते ज प्रश्न
उठावीने तेनो मार्मिक उत्तर पण दीधो छे, जेथी अध्येताने पछी कोई संदेहनो अवकाश रहे नहि.
आ ग्रंथमां जे कांई वस्तुविवेचन छे ते अनेक विषयो पर प्रकाश पाथरनार, सुसंबद्ध, आश्चर्यकारक
अने जैनदर्शननुं मार्मिक रहस्य समजाववा माटे एक अद्वितीय चावी समान छे, अर्थात् आमां
निर्ग्रंथ प्रवचननां ऊंडां मार्मिक रहस्यो ग्रंथकारे ठामठाम प्रगट कर्यां छे.
अन्यमतनिराकरण विषे लखवामां तेमनो हेतु कांई परमत प्रत्ये द्वेषपरिणति कराववानो
नथी, परंतु पोताना अभिप्रायमां ते ते मत संबंधी जो कांई धर्मबुद्धिरूप अभिप्राय होय तो ते
अभिप्राय छोडाववानो छे. तेओ पोते ज आ संबंधमां आ प्रमाणे लखे छेः ‘‘अहीं नाना प्रकारना
मिथ्याद्रष्टिओनुं कथन कर्युं छे तेनुं प्रयोजन एटलुं ज जाणवुं के
ए प्रकारोने ओळखी पोतानामां
कोई एवो दोष होय तो तेने दूर करी सम्यक्श्रद्धानयुक्त थवुं, पण अन्यना एवा दोष जोई कषायी
न थवुं; कारण के पोतानुं भलुं-बूरुं तो पोताना परिणामोथी थाय छे; जो अन्यने रुचिवान देखे
तो कंईक उपदेश आपी तेनुं पण भलुं करे.’’
श्रीमान् पंडितप्रवर टोडरमलजी दिगंबर जैनधर्मना प्रभावक विशिष्ट महापुरुष हता. तेमणे
मात्र छ महिनामां सिद्धान्तकौमुदी जेवा कठण व्याकरणनो अभ्यास कर्यो हतो. पोतानी कुशाग्रबुद्धिना
प्रभावथी तेमणे षट्दर्शनना ग्रंथो, बौद्ध, मुस्लिम तेमज अन्य अनेक मतमतान्तरोना ग्रंथोनुं
अध्ययन कर्युं हतुं, श्वेताम्बर-स्थानकवासीनां सूत्रो तथा ग्रंथोनुं पण अवलोकन कर्युं हतुं, तथा दिगंबर
जैन ग्रंथोमां श्री समयसार, पंचास्तिकायसंग्रह, प्रवचनसार, नियमसार, गोम्मटसार, तत्त्वार्थसूत्र,
अष्टपाहुड, आत्मानुशासन, पद्मनंदिपंचविंशतिका, श्रावकमुनिधर्मनां प्ररूपक अनेक शास्त्रो तथा कथा-
पुराणादि घणां शास्त्रोनो अभ्यास कर्यो हतो. ए सर्व शास्त्रोना अभ्यासथी तेमनी बुद्धि घणी ज
प्रखर बनी हती. शास्त्रसभा, व्याख्यानसभा अने विवादसभामां तेओ घणा ज प्रसिद्ध हता. आ
असाधारण प्रभावकपणाने लीधे तेओ तत्कालीन राजाने पण अतिशय प्रिय थई पड्या हता, अने
ए राजप्रियता तथा पांडित्यप्रखरताने कारणे अन्यधर्मीओ तेमनी साथे मत्सरभाव करवा लाग्या
हता, कारण के तेमनी सामे ते अन्यधर्मीओना मोटा मोटा विद्वानो पण पराभव पामता हता.
जोके तेओ पोते कोई पण विधर्मीओनो अनुपकार करता नहोता; परंतु बने त्यां सुधी तेमनो उपकार
ज कर्या करता हता, तोपण मात्सर्ययुक्त मनुष्योनो मत्सरताजन्य कृत्य करवानो ज स्वभाव छे;
तेमना मत्सर अने वैरभावना कारणे ज पंडितजीनो अकाळे देहान्त थई गयो हतो.
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