Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंडित टोडरमलजीना मृत्यु विषे एक दुःखद घटनानो उल्लेख पं. बखतराम शाहना
‘बुद्धिविलास’ ग्रंथमां नीचे प्रमाणे करवामां आव्यो छेः
‘‘तब ब्राह्मणनुं मतौ यह कियो, शिव उठानको टौना दियो
तामैं सबै श्रावगी कैद, करिके दन्ड किये नृप फै द ।।
गुरु तेरह-पंथिनुको भ्रमी, टोडरमल्ल नाम साहिमी
ताहि भूप मार्यो पल माहि, गाडयो मद्धि गन्दगी ताहि ।।’’
आमां स्पष्ट कह्युं छे के सं. १८१८ पछी जयपुरमां ज्यारे जैनधर्मनो पुनः विशेष उद्योत
थवा लाग्यो, त्यारे जैनधर्म प्रति विद्वेष राखनार ब्राह्मणो ते सही शक्या नहि अने तेथी तेमणे
एक गुप्त ‘षडयंत्र’ रच्युं. तेमणे शिवपिंडी उखाडीने जैनो उपर ‘उखाडी नाखवानो’ आरोप लगाव्यो
अने राजा माधवसिंहने, जैनो विरुद्ध भडकावीने, क्रोधित कर्या. राजाए सत्यासत्यनी कांई तपास
कर्या विना क्रोधवश बधा जैनोने रात्रे केद करी लीधा अने तेमना प्रसिद्ध विद्वान पंडित टोडरमलजीने
पकडी मारी नाखवानो हुकम दई दीधो. तदनुसार हाथीना पग तळे कचरावीने मरावी नाख्या अने
तेमना शबने शहेरनी गंदकीमां दटावी दीधुं.
आ वात प्रचलित छे के ज्यारे पंडितजीने हाथीना पग तळे नाखवामां आव्या अने
अंकुशनाप्रहारपूर्वक हाथीने, तेमना शरीरने कचरी नाखवा, प्रेरित करवामां आव्यो त्यारे हाथी
एकदम चिल्लाईने थंभी गयो. ए रीते बे वार ते अंकुशना प्रहार खाई चूक्यो. परंतु पंडितजी
उपर पोताना पगनो प्रहार कर्यो नहि. तेना उपर अंकुशनो त्रीजो प्रहार पडवानी तैयारी हती,
त्यां पंडितजीए हाथीनी दशा जोईने कह्युं के
हे गजेन्द्र! तारो कांई अपराध नथी; ज्यां प्रजाना
रक्षके ज अपराधी-निरपराधीनी तपास कर्या विना मारी नाखवानो हुकम दई दीधो, त्यां तुं अंकुशना
प्रहार व्यर्थ केम सहन करी रह्यो छे? संकोच छोड अने तारुं काम कर. आ वाक्यो सांभळीने
हाथीए पोतानुं काम कर्युं . राजा माधवसिंह(प्रथम)ने ज्यारे आ ‘षड्यन्त्र’नी खबर पडी त्यारे
तेमने खूब दुःख थयुं अने पोताना अधम कृत्य पर ते घणा पस्ताया.
पंडितजीना जीवननुं मुख्य ध्येय एक स्व-पर कल्याण ज हतुं. अंतरंगमां क्षयोपशमविशेषथी
तथा बाह्यमां तर्कवितर्कपूर्वक अनेक शास्त्रोना अध्ययनथी तेमनो वीतराग-विज्ञानभाव एटलो बधो
वधी गयो हतो के
सांसारिक कार्योथी तेओ पोते प्रायः विरक्त ज रह्या करता हता; अने धार्मिक
कार्योमां एटला बधा तल्लीन रह्या करता हता केबाह्य जगतनी तथा आस्वाद्य पदार्थोनी तेमने
कांई पण सुध रहेती नहोती. आ विषयमां एक जनश्रुति एवी पण छे केजे काळे तेओ ग्रंथ
रचना करी रह्या हता ते काळमां तेमनां मातुश्रीए खाद्य पदार्थोमां छ महिना सुधी मीठालुण नाख्युं
नहोतुं; छ महिना पछी शास्त्ररचना तरफथी तेमनो उपयोग कंईक खसतां एक दिवस तेमणे
मातुश्रीने पूछ्युंः माजी! आजे आपे दाळमां मीठालुण केम नाख्युं नथी? ए सांभळी माजी
बोल्यांः भाई! हुं तो आम छ महिनाथी मीठालुण नाखती नथी.’ आ बधुं लखवानुं तात्पर्य एटलुं
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