Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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ज छे के तेमना समयमां तेओ एक महान धर्मात्मा, श्रेष्ठ परोपकारी, निरभिमानी तथा अद्वितीय
विद्वान हता. जैनसमाजना दुर्भाग्यथी ज आवा महात्मानो असमयमां वियोग थयो, पण तेमणे
तो पोते जीवनपर्यंत जैनसमाज उपर अनन्य उपकार कर्यो छे अने तेथी ज समाजमां तेमनुं स्थान
अविस्मरणीय छे. मुमुक्षु आत्माओ तो आजे पण तेमनुं अने तेमना गुणोनुं स्मरण करी परम
संतुष्ट थाय छे.
पंडित श्री टोडरमलजी द्वारा रचित आ ‘मोक्षमार्गप्रकाशक’ ग्रंथ ढुंढारी तेम ज हिन्दी
भाषामां अनेकवार प्रसिद्ध थई चूक्यो छे. पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनां करकमळमां आ ग्रंथ
सर्वप्रथम वि. सं. १९८२मां आव्यो. तेमणे खूब मननपूर्वक आ ग्रंथनुं ऊंडुं अवगाहन कर्युं हतुं.
तेनुं अवगाहन करती वखते पूज्य गुरुदेवश्रीनी परिणति एटली बधी तल्लीन हती के
न गमे
खावुं, पीवुं के वहोरवा जवुं, न गमे अन्य वातचीत. स्थानकवासी साधुपर्यायमां तेओ पुस्तक साथे
राखता नहि परंतु मोक्षमार्गप्रकाशकनो सातमो अधिकार विशेष सारो लागवाथी (झीणा अक्षरे
हाथथी लखावी पुनः पुनः स्वाध्याय करवा माटे साथे राख्यो हतो. पूज्य गुरुदेवश्रीए स्थानकवासी
साधुपर्यायना त्यागरूप ‘परिवर्तन’ वि. सं. १९९१मां कर्युं. त्यार पछी वि. सं. १९९७मां
कलोलनिवासी श्री सोमचंदभाई अमथालाल शाह कृत गुजराती अनुवाद (मोक्षमार्गप्रकाशकनो)
प्रकाशित थयो. ते गुजराती अनुवादनी पूज्य गुरुदेवश्रीना पुनित प्रतापे श्री दिगंबर जैन
स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट (सोनगढ) तरफथी अगाउ चौद आवृत्ति छपाई गई छे. प्रस्तुत संस्करण तेनी
पंदरमी आवृत्ति छे.
पंडित श्री टोडरमलजीए प्रथम अधिकारना अंतमां आगम-अभ्यासनी जे प्रेरणा आपी
छे तेनो उल्लेख करीने आ उपोद्घात पूर्ण करवामां आवे छे‘‘ आ जीवनुं मुख्य कर्तव्य तो
आगमज्ञान छे. ए थतां तत्त्वोनुं श्रद्धान थाय छे, तत्त्वश्रद्धान थतां संयमभाव थाय छे अने ते
आगमज्ञानथी आत्मज्ञाननी पण प्राप्ति थाय छे, जेथी सहेजे मोक्षनी प्राप्ति थाय छे. धर्मना अनेक
अंगो छे तेमां पण एक ध्यान सिवाय आनाथी (आगम-अभ्यासथी) ऊंचुं धर्मनुं अन्य कोई अंग
नथी एम जाणी हरकोई प्रकारे आगमनो अभ्यास करवा योग्य छे. वळी आ ग्रंथनुं वांचवुं,
सांभळवुं अने विचारवुं घणुं सुगम छे. कोई व्याकरणादि साधननी जरूर पडती नथी, माटे तेना
अभ्यासमां अवश्य प्रवर्तो. एथी तमारुं कल्याण थशे.’’
वि. सं. २०६२, श्रावण वद २,
(बहेनश्री चंपाबेननी९३मी जन्मजयंती)
ता. ११-८-०६
साहित्यप्रकाशनसमिति
श्री दि० जैन स्वाध्यायमंदिर
ट्रस्ट
सोनगढ
(१०)