अरिहंतनुं स्वरूप .................................... २
श्री सिद्ध परमेष्ठीनुं स्वरूप ....................... ३
आचार्य, उपाध्याय अने साधुनुं स्वरूप ........ ३
आचार्यनुं स्वरूप..................................... ४
उपाध्यायनुं स्वरूप ................................... ४
साधुनुं स्वरूप ........................................ ५
पूज्यत्वनुं कारण ..................................... ५
श्रेष्ठ सिद्धपद पहेलां अर्हंतने नमस्कार
मंगलाचरण करवानुं कारण ....................... ९
ग्रंथनी प्रामाणिकता अने आगम परंपरा.... ११
ग्रंथकर्तानो आगम अभ्यास .................... १२
असत्य पद रचनानो निषेध .................... १३
केवां शास्त्र वांचवा
श्रोतानुं स्वरूप ..................................... १८
मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथनी सार्थकता .............. २१
कर्मबंधन रोगनुं निदान.......................... २५
कर्मनो संबंध अनादिकाळथी छे ................ २५
कर्मोना अनादिपणानी सिद्धि .................... २६
जीव अने कर्मोनी भिन्नता ..................... २७
अमूर्तिक आत्माथी मूर्तिक कर्मोनो बंध
योग अने तेनाथी थवावाळा प्रकृतिबंध,
द्रव्यकर्म अने भावकर्म ........................... ३४
नोकर्मनुं स्वरूप अने तेनी प्रवृत्ति ............. ३४
नित्यनिगोद अने इतरनिगोद .................. ३५
कर्मबंधनरूप रोगना निमित्तथी थती जीवनी
श्रुतज्ञाननी पराधीन प्रवृत्ति ..................... ३७
अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवळज्ञाननी प्रवृत्ति३८
चक्षु
चारित्रमोहरूप जीवनी अवस्था................. ४१
अंतरायकर्मोदयजन्य अवस्था .................... ४३
वेदनीयकर्मोदयजन्य अवस्था ..................... ४४
आयुकर्मोदयजन्य अवस्था........................ ४४
नामकर्मोदयजन्य अवस्था ........................ ४५
गोत्रकर्मोदयजन्य अवस्था ........................ ४६