Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Vishayanukramanika.

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(११)
विषयानुक्रमणिका
विषयपृष्ठविषयपृष्ठ
अधिकार प्रथम १ थी २४
मंगलाचरण ........................................... १
अरिहंतनुं स्वरूप .................................... २
श्री सिद्ध परमेष्ठीनुं स्वरूप ....................... ३
आचार्य, उपाध्याय अने साधुनुं स्वरूप ........ ३
आचार्यनुं स्वरूप..................................... ४
उपाध्यायनुं स्वरूप ................................... ४
साधुनुं स्वरूप ........................................ ५
पूज्यत्वनुं कारण ..................................... ५
श्रेष्ठ सिद्धपद पहेलां अर्हंतने नमस्कार
करवानुं कारण ................................ ७
अरिहंतादिकथी प्रयोजन सिद्धि ................... ८
मंगलाचरण करवानुं कारण ....................... ९
ग्रंथनी प्रामाणिकता अने आगम परंपरा.... ११
ग्रंथकर्तानो आगम अभ्यास .................... १२
असत्य पद रचनानो निषेध .................... १३
केवां शास्त्र वांचवा
सांभळवा योग्य छे ...... १५
वकतानुं स्वरूप ..................................... १५
श्रोतानुं स्वरूप ..................................... १८
मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथनी सार्थकता .............. २१
अधिकार बीजो २५ थी ४६
संसार-अवस्था निरूपण .......................... २५
कर्मबंधन रोगनुं निदान.......................... २५
कर्मनो संबंध अनादिकाळथी छे ................ २५
कर्मोना अनादिपणानी सिद्धि .................... २६
जीव अने कर्मोनी भिन्नता ..................... २७
अमूर्तिक आत्माथी मूर्तिक कर्मोनो बंध
केवी रीते थाय छे ......................... २७
घातिअघाति कर्म अने तेनां कार्य ............ २८
निर्बळ जडकर्मो द्वारा जीवना स्वभावनो
घात तथा बाह्यसामग्रीनुं मळवुं ........ २८
नवीन बंध केवी रीते थाय छे ................. २९
योग अने तेनाथी थवावाळा प्रकृतिबंध,
प्रदेशबंध ..................................... ३०
ज्ञानहीन जडपरमाणुनुं यथायोग्य प्रकृतिरूप
परिणमन .................................... ३२
कर्मोनी बंध, उदय, सत्तारूप अवस्थानुं
परिवर्तन ..................................... ३३
कर्मोनी उदयरूप अवस्था ........................ ३३
द्रव्यकर्म अने भावकर्म ........................... ३४
नोकर्मनुं स्वरूप अने तेनी प्रवृत्ति ............. ३४
नित्यनिगोद अने इतरनिगोद .................. ३५
कर्मबंधनरूप रोगना निमित्तथी थती जीवनी
अवस्थाओ................................... ३५
ज्ञानदर्शनावरणकर्मोदयजन्य अवस्था ......... ३५
मति, श्रुत अने अवधिज्ञाननी पराधीन प्रवृत्ति.. ३६
श्रुतज्ञाननी पराधीन प्रवृत्ति ..................... ३७
अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवळज्ञाननी प्रवृत्ति३८
चक्षु
अचक्षुदर्शननी प्रवृत्ति....................... ३८
ज्ञानदर्शनोपयोगादिनी प्रवृत्ति ................. ३९
मिथ्यात्वरूप जीवनी अवस्था .................... ४०
चारित्रमोहरूप जीवनी अवस्था................. ४१
अंतरायकर्मोदयजन्य अवस्था .................... ४३
वेदनीयकर्मोदयजन्य अवस्था ..................... ४४
आयुकर्मोदयजन्य अवस्था........................ ४४
नामकर्मोदयजन्य अवस्था ........................ ४५
गोत्रकर्मोदयजन्य अवस्था ........................ ४६