Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Jiv-Ajivtattva Sambandhi Ayathartha Shraddhan.

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वर्णन तो श्रद्धान कराववा माटे छे, पण जाणे तो श्रद्धान करे, तेथी जाणवानी मुख्यतापूर्वक
वर्णन करीए छीए.
जीवअजीवतत्त्व संबंधाी अयथार्थ श्रद्धान
अनादि काळथी जीव छे ते कर्मनिमित्त वडे अनेक पर्याय धारण करे छे, त्यां पूर्व
पर्यायने छोडी नवीन पर्याय धारण करे छे तथा ते पर्याय एक तो पोते आत्मा तथा अनंत
पुद्गलपरमाणुमय शरीर ए बंनेना एक पिंडबंधानरूप छे. तेमां आ जीवने ‘‘आ हुं छुं’’
एवी अहंबुद्धि थाय छे. वळी पोते जीव छे तेनो स्वभाव तो ज्ञानादिक छे अने विभाव
क्रोधादिक छे. तथा पुद्गल परमाणुओनो स्वभाव वर्ण
गंधरसस्पर्शादिक छे. ए सर्वने
पोतानुं स्वरूप माने छे.
‘‘आ मारां छे’’एवी तेओमां ममत्वबुद्धि थाय छे. पोते जीव छे तेना ज्ञानादिक
वा क्रोधादिकनी अधिकताहीनतारूप अवस्थाओ थाय छे तथा पुद्गलपरमाणुओनी वर्णादि
पलटावारूप अवस्थाओ थाय छे ते सर्वने पोतानी अवस्था मानी तेमां ‘‘आ मारी अवस्था
छे’’
एवी ममकारबुद्धि करे छे.
वळी जीवने अने शरीरने निमित्तनैमित्तिक संबंध छे तेथी जे क्रिया थाय छे तेने
पोतानी माने छे; पोतानो स्वभाव दर्शनज्ञान छे, तेनी प्रवृत्तिने निमित्तमात्र शरीरनां अंगरूप
स्पर्शनादिक द्रव्य इंद्रियो छे. हवे आ जीव ते सर्वने एकरूप मानी एम माने छे के‘‘हाथ
वगेरेथी में स्पर्श्युं, जीभ वडे में स्वाद लीधो, नासिका वडे में सूघ्युं, नेत्र वडे में दीठुं, कान
वडे में सांभळ्युं.’’ मनोवर्गणा रूप आठ पाखंडी वाळा फूल्या कमळना आकारे हृदयस्थानमां
शरीरना अंगरूप द्रव्यमन छे जे द्रष्टिगम्य नथी, तेनुं निमित्त थतां स्मरणादिरूप ज्ञाननी प्रवृत्ति
थाय छे. ए द्रव्यमन तथा ज्ञानने एकरूप मानी एम माने छे के ‘‘में मन वडे जाण्युं.’’
वळी पोताने ज्यारे बोलवानी इच्छा थाय त्यारे पोताना प्रदेशोने जेम बोलवानुं बने
तेम हलावे छे त्यारे एकक्षेत्रावगाह संबंधथी शरीरनुं अंग पण हाले छे. तेना निमित्तथी
भाषावर्गणारूप पुद्गलो वचनरूप परिणमे छे, ए बधाने एकरूप मानी आ एम माने के
‘‘हुं बोलुं छुं.’’
तथा पोताने गमनादिक क्रियानी वा वस्तुग्रहणादिकनी इच्छा थाय त्यारे पोताना
प्रदेशोने जेम ए कार्य बने तेम हलावे त्यां एकक्षेत्रावगाह संबंधथी शरीरनां अंग हाले छे
त्यारे ए कार्य बने छे अथवा पोतानी इच्छा विना शरीर हालतां पोतानां प्रदेशो पण हाले.
हवे ए बधांने एकरूप मानी आ एम मानवा लागे के ‘‘हुं गमनादि कार्य करुं छुं, वा हुं
वस्तुनुं ग्रहण करुं छुं अथवा में कर्युं’’
इत्यादिरूप माने छे.
८२ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक
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