Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 73 of 370
PDF/HTML Page 101 of 398

 

background image
जीवने कषायभाव थतां शरीरनी चेष्टा ए कषायभाव अनुसार थई जाय छे. जेम
क्रोधादिक थतां रक्त नेत्रादि थई जाय, हास्यादिक थतां प्रफुल्लित वदनादिक थई जाय अने
पुरुषवेदादि थतां लिंगकाठिण्यादि थई जाय. हवे ए सर्वने एकरूप मानी आ एम माने छे
के
‘‘ए बधा कार्य हुं करुं छुं.’’ शरीरमां शीतउष्ण, क्षुधातृषा अने रोगादि अवस्थाओ
थाय छे तेना निमित्तथी मोहभाववडे पोते सुखदुःख माने छे. ए बधाने एकरूप जाणी
शीतादिक वा सुखदुःख पोताने ज थयां एम माने छे. वळी शरीरना परमाणुओनुं मळवुं
विखरावुं आदि थवाथी, अथवा शरीरनी अवस्था पलटावाथी वा शरीर स्कंधना खंडादिक थवाथी
स्थूल
कृशादिक, बाळवृद्धादिक वा अंगहीनाधिक थाय छे अने ते अनुसार पोताना प्रदेशोनो
पण संकोचविस्तार थाय छे. ए बधाने एकरूप मानी आ जीव ‘‘हुं स्थूल छुं, हुं कृश छुं,
हुं बाळक छुं, हुं वृद्ध छुं तथा मारां अमुक अंगोनो भंग थयो’’ इत्यादि माने छे.
शरीरनी अपेक्षाए गतिकुलादिक होय छे तेने पोताना मानी ‘‘हुं मनुष्य छुं, हुं तिर्यंच
छुं, हुं क्षत्रिय छुं तथा हुं वैश्य छुं’’इत्यादिरूप माने छे. शरीरनो संयोग थवा अने
छूटवानी अपेक्षाए जन्ममरण होय छे तेने पोतानां जन्ममरण मानी ‘‘हुं ऊपज्यो, हुं
मरीश’’ एम माने छे. वळी शरीरनी ज अपेक्षाए अन्य वस्तुओथी संबंध माने छे. जेम
के
जेनाथी शरीर नीपज्युं तेने पोतानां मातापिता माने छे, शरीरने रमाडे तेने पोतानी
रमणी माने छे, शरीर वडे नीपज्यां तेने पोतानां दीकरादीकरी माने छे, शरीरने जे उपकारक
छे तेने पोतानो मित्र माने छे तथा शरीरनुं बूरुं करे तेने पोतानो शत्रु माने छे,इत्यादिरूप
तेनी मान्यता होय छे. घणुं शुं कहीए? हरकोई प्रकार वडे पोताने अने शरीरने ते एकरूप
ज माने छे. इन्द्रियादिकनां नाम तो अहीं कह्यां छे, पण तेने तो कांई गम्य नथी. मात्र अचेत
जेवो बनी पर्यायमां ज अहंबुद्धि धारण करे छे, तेनुं शुं कारण छे ते अहीं कहीए छीए.
आ आत्माने अनादि काळथी इन्द्रियज्ञान छे, जेथी अमूर्तिक एवो पोते तो पोताने
भासतो नथी, पण मूर्तिक एवुं शरीर ज भासे छे. अने तेथी आत्मा कोई अन्यने आपरूप
जाणी तेमां अहंबुद्धि अवश्य धारण करे, कारण के पोते पोताने परथी जुदो न भास्यो एटले
तेना समुदायरूप पर्यायमां ज ते अहंबुद्धि धारण करे छे. वळी पोताने अने शरीरने निमित्त
नैमित्तिकसंबंध घणो होवाथी (शरीरथी पोतानी) भिन्नता भासती नथी. हवे जे विचारो वडे
भिन्नता भासी शके एम छे ए विचारो मिथ्यादर्शनना जोरथी थई शकता नथी तेथी तेने
पर्यायमां ज अहंबुद्धि होय छे. मिथ्यादर्शनवडे आ जीव कोई वेळा बाह्य सामग्रीनो संयोग
थतां तेने पण पोतानी माने छे. पुत्र, स्त्री, धन, धान्य, हाथी, घोडा, मकान अने नोकर
चाकरादि जे पोतानाथी प्रत्यक्ष भिन्न छे, सदाकाळ पोताने आधीन नथीएम पोताने जणाय
तोपण तेमां ममकार करे छे. पुत्रादिकमां ‘‘आ छे ते हुं ज छुं.’’ एवी पण कोई वेळा
भ्रमबुद्धि थाय छे. मिथ्यादर्शनथी शरीरादिकनुं स्वरूप पण अन्यथा ज भासे छे. अनित्यने
चोथो अधिकारः मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रनुं विशेष निरूपण ][ ८३