Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Ashravatattva Sambandhi Ayatharth Shraddhan Bandhatattva Sambandhi Ayatharth Shraddhan.

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नित्य, भिन्नने अभिन्न, दुःखनां कारणोने सुखनां कारण माने छे तथा दुःखने सुख माने
छे
इत्यादि प्रकारे विपरीत भासे छे. ए प्रमाणे जीवअजीव तत्त्वोनुं अयथार्थ ज्ञान थतां
श्रद्धान पण अयथार्थ थाय छे.
आuावतत्त्व संबंधाी अयथार्थ श्रद्धान
वळी आ जीवने मोहना उदयथी मिथ्यात्वकषायादिक भाव थाय छे तेने ते पोतानो
स्वभाव माने छे, परंतु ते कर्मउपाधिथी थाय छे, एम जाणतो नथी. दर्शनज्ञान उपयोग
अने आस्रवभाव ए बंनेने ते एकरूप माने छे, कारण केतेनो आधारभूत एक आत्मा छे.
वळी तेनुं अने आस्रवभावनुं परिणमन एक ज काळमां होवाथी तेनुं भिन्नपणुं तेने भासतुं
नथी तथा ए भिन्नपणुं भासवाना कारणरूप विचारो छे ते मिथ्यादर्शनना बळथी थई शकता
नथी. ए मिथ्यात्वभाव अने कषायभाव व्याकुळता सहित छे तेथी ते वर्तमानमां दुःखमय छे
अने कर्मबंधना कारणरूप होवाथी भाविमां दुःख उत्पन्न करशे. तेने ए प्रमाणे न मानतां
ऊलटा भला जाणी पोते ए भावोरूप थई प्रवर्ते छे. वळी दुःखी तो पोताना मिथ्यात्व अने
कषायभावोथी थाय छे छतां निरर्थक अन्यने दुःख उपजाववावाळा माने छे. जेम दुःखी तो
मिथ्याश्रद्धानथी थाय छे छतां पोताना श्रद्धान अनुसार जो पदार्थ न प्रवर्ते तो तेने दुःखदायक
मानवा लागे छे. दुःखी तो क्रोधथी थाय छे छतां जेनाथी क्रोध कर्यो होय तेने दुःखदायक
मानवा लागे छे तथा दुःखी तो लोभथी थाय छे पण इष्ट वस्तुनी अप्राप्तिने दुःखदायक
माने छे
ए ज प्रमाणे अन्य ठेकाणे पण समजवुं. ए भावोनुं जेवुं फळ आवे तेवुं तेने भासतुं
नथी. एनी तीव्रतावडे नरकादिक तथा मंदतावडे स्वर्गादिक प्राप्त थाय छे त्यां घणीथोडी
व्याकुळता थाय तेवुं तेने भासतुं नथी तेथी ते भावो बूरा पण लागता नथी. तेनुं कारण शुं?
कारण ए ज के ए भावो पोताना करेला भासे छे तेथी तेने बूरा केम माने? ए प्रमाणे
आस्रवतत्त्वनुं अयथार्थ ज्ञान थतां श्रद्धान पण अयथार्थ थाय छे.
बंधातत्त्व संबंधाी अयथार्थ श्रद्धान
वळी ए आस्रवभावोवडे ज्ञानावरणादि कर्मोनो बंध थाय छे तेनो उदय थतां ज्ञान
दर्शननुं हीनपणुं थवुं, मिथ्यात्वकषायरूप परिणमन थवुं, इच्छानुसार न बनवुं, सुखदुःखनां
कारणो मळवां, शरीरनो संयोग रहेवो, गतिजातिशरीरादिक नीपजवां अने नीचुंऊचुं कुळ
पामवुं थाय छे. ए बधां होवामां मूळ कारण कर्म छे, तेने आ जीव ओळखतो नथी कारण
के ते सूक्ष्म छे तेथी तेने सूजतां नथी अने पोताने ए कार्योनो कर्ता कोई देखातो नथी एटले
ए बधां होवामां कां तो पोताने कर्तारूप माने छे अगर तो अन्यने कर्तारूप माने छे. तथा
कदाचित् पोतानुं वा अन्यनुं कर्तापणुं न भासे तो घेला जेवो बनी भवितव्य मानवा लागे
छे, ए प्रमाणे बंधतत्त्वनुं अयथार्थ ज्ञान थतां श्रद्धान पण अयथार्थ थाय छे.
८४ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक