Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Punya-pap Tattva Sambandhi Ayatharth Shraddhan Mithyagyananu Swaroop.

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थवुं छे,’’ पण एम तो कदी पण बनी शके नहि. आ जीव निरर्थक ज खेद करे छे. ए प्रमाणे
मिथ्यादर्शनथी मोक्षतत्त्वनुं अयथार्थ ज्ञान थतां श्रद्धान पण अयथार्थ थाय छे. एवी रीते आ
जीव मिथ्यादर्शनथी जीवादि साते प्रयोजनभूत तत्त्वोनुं अयथार्थ श्रद्धान करे छे.
पुण्यपाप संबंधाी अयथार्थ श्रद्धान
वळी पुण्यपाप छे ते तेनां ज विशेष छे, ए पुण्यपापनी एक जाति छे तोपण
मिथ्यादर्शनथी पुण्यने भलुं तथा पापने बूरुं जाणे छे. पुण्यवडे पोतानी इच्छानुसार किंचित्
कार्य बने तेने भलुं जाणे छे तथा पापवडे इच्छानुसार कार्य न बने तेने बूरुं जाणे छे. हवे
ए बंने आकुळतानां ज कारणो होवाथी बूरां ज छे. छतां आ जीव पोतानी मान्यताथी ज
त्यां सुख
दुःख माने छे. वास्तविकपणे ज्यां आकुळता छे त्यां दुःख ज छे; माटे पुण्यपापना
उदयने भलोबूरो जाणवो ए भ्रम ज छे. तथा कोई जीव कदाचित् पुण्यपापना कारणरूप
शुभाशुभ भावोने भलाबूरा जाणे छे ते पण भ्रम छे, कारण के ए बंने कर्मबंधनां ज
कारणो छे. ए प्रमाणे पुण्यपापनुं अयथार्थ ज्ञान थतां श्रद्धान पण अयथार्थ थाय छे. ए
रीते अतत्त्वश्रद्धानरूप मिथ्यादर्शननुं स्वरूप कह्युं. ते असत्यरूप छे; माटे तेनुं ज नाम मिथ्यात्व
छे तथा सत्यश्रद्धानथी रहित छे माटे तेनुं ज नाम अदर्शन छे. हवे मिथ्याज्ञाननुं स्वरूप
कहीए छीए.
मिथ्याज्ञाननुं स्वरुप
प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्वोने अयथार्थ जाणवां तेनुं नाम मिथ्याज्ञान छे. ए वडे ए
तत्त्वोने जाणवामां संशय, विपर्यय अने अनध्यवसाय थाय छे. त्यां ‘‘आ प्रमाणे छे के आ
प्रमाणे छे’’
एवुं जे परस्पर विरुद्धता पूर्वक बे प्रकाररूप ज्ञान तेनुं नाम संशय छे. जेम
‘‘हुं आत्मा छुं के शरीर छुं’’ एम जाणवुं ते संशय. वस्तुस्वरूपथी विरुद्धता पूर्वक ‘‘आ आम
ज छे,’’ एवुं एकरूप ज्ञान तेनुं नाम विपर्यय छे. जेम ‘‘हुं शरीर छुं’’ एम जाणवुं ते
विपर्यय छे, तथा ‘‘कंईक छे’’ एवो निर्धाररहित विचार तेनुं नाम अनध्यवसाय छे. जेम ‘‘हुं
कोईक छुं’’ एम जाणवुं ते अनध्यवसाय छे. ए प्रमाणे प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्वोमां संशय,
विपर्यय अने अनध्यवसाय जे जाणवुं थाय तेनुं नाम मिथ्याज्ञान छे. पण अप्रयोजनभूत
पदार्थोने यथार्थ जाणे अथवा अयथार्थ जाणे तेनी अपेक्षाए कांई मिथ्याज्ञान
सम्यग्ज्ञान नथी.
जेम मिथ्याद्रष्टि दोरडीने दोरडी जाणे तेथी कांई सम्यग्ज्ञान नाम पामे नहि तथा सम्यग्द्रष्टि
दोरडीने साप जाणे तेथी कांई ते मिथ्याज्ञान नाम पामे नहि.
प्रश्नःप्रत्यक्ष साचाजूठा ज्ञानने सम्यग्ज्ञानमिथ्याज्ञान केम न कहेवाय?
उत्तरःज्यां जाणवानुं जसाचजूठ निर्धार करवानुं जप्रयोजन होय त्यां तो
८६ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक