तेना क्षयोपशमथी किंचित् ज्ञानरूप मति – श्रुत आदि ज्ञान होय छे. हवे जो तेमांथी कोईने
मिथ्याज्ञान तथा कोईने सम्यग्ज्ञान कहीए तो ए बंने भाव मिथ्याद्रष्टि वा सम्यग्द्रष्टिमां होय
छे, तेथी ए बंनेने मिथ्याज्ञान वा सम्यग्ज्ञाननो सद्भाव थई जाय, जे सिद्धांतविरुद्ध छे.
माटे अहीं ज्ञानावरणनुं निमित्त बनतुं नथी.
प्रश्नः — दोरडी – सर्पादिकनुं अयथार्थ ज्ञान होवानुं कयुं कारण छे? तेने ज
जीवादि तत्त्वना अयथार्थ – यथार्थ ज्ञाननुं कारण कहो तो शुं वांधो?
उत्तरः — जाणवामां जेटलुं अयथार्थपणुं होय छे तेटलुं तो ज्ञानावरणना उदयथी होय
छे तथा यथार्थपणुं होय छे तेटलुं ज्ञानावरणना क्षयोपशमथी होय छे. जेम दोरडीने सर्प
जाणवामां आवे त्यां अयथार्थ जाणवानी शक्तिना कारणरूप ज्ञानावरणनो उदय छे तेथी ते
अयथार्थ जाणे छे, तथा दोरडीने दोरडी जाणवामां आवे छे त्यां यथार्थ जाणवानी शक्तिना
कारणरूप ज्ञानावरणनो क्षयोपशम छे तेथी ते यथार्थ जाणे छे, तेम जीवादि तत्त्वोने यथार्थ
जाणवानी शक्ति न होवा अथवा होवामां तो ज्ञानावरणनुं ज निमित्त छे, परंतु जेम कोई
पुरुषने क्षयोपशमथी दुःख वा सुखना कारणभूत पदार्थोने यथार्थ जाणवानी शक्ति होय, त्यां
जेने अशातावेदनीयनो उदय होय ते दुःखना कारणभूत जे पदार्थो होय तेने ज वेदे पण सुखना
कारणभूत पदार्थोने न वेदे. जो ते सुखना कारणभूत पदार्थोने वेदे तो सुखी थाय, पण
अशाताना उदयथी तेनाथी एम बनी शकतुं नथी, माटे अहीं दुःख के सुखना कारणभूत
पदार्थोने वेदवामां ज्ञानावरणनुं निमित्त नथी, पण अशाता – शातावेदनीयनो उदय ज कारणभूत
छे. ए ज प्रमाणे जीवमां प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्व तथा अप्रयोजनभूत अन्य पदार्थोने यथार्थ
जाणवानी शक्ति होय, पण त्यां जेने मिथ्यात्वनो उदय होय ते तो अप्रयोजनभूत होय तेने
ज वेदे – जाणे छे पण प्रयोजनभूतने जाणतो नथी. जो ते प्रयोजनभूतने जाणे तो सम्यग्दर्शन
थई जाय, पण मिथ्यात्वनो उदय होवाथी एम बनी शकतुं नथी. माटे त्यां प्रयोजनभूत –
अप्रयोजनभूत पदार्थो जाणवामां ज्ञानावरणनुं निमित्त नथी; परंतु मिथ्यात्वनो उदय – अनुदय
ज कारणभूत छे.
अहीं एम जाणवुं के — ज्यां एकेन्द्रियादिक जीवोने जीवादि तत्त्वोने यथार्थ जाणवानी
शक्ति ज न होय त्यां तो ज्ञानावरण अने मिथ्यात्वना उदयथी थयेलुं मिथ्याज्ञान – मिथ्यादर्शन
ए बंनेनुं निमित्त छे, तथा ज्यां संज्ञी मनुष्यादिकने क्षयोपशमादि लब्धिजनित शक्ति होय
अने ते न जाणे त्यां तो मिथ्यात्वनो उदय ज निमित्तरूप जाणवो. तेथी मिथ्याज्ञाननुं मुख्य
कारण ज्ञानावरण न कहेतां दर्शनमोहनीयना उदयजनित भावने ज कारणरूप कह्यो.
प्रश्नः — जो ज्ञान थया पछी श्रद्धान थाय छे, तो पहेलां मिथ्याज्ञान कहो
अने पछी मिथ्यादर्शन कहो?
८८ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक