Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Mithyacharitranu Swaroop.

< Previous Page   Next Page >


Page 79 of 370
PDF/HTML Page 107 of 398

 

background image
उत्तरःछे तो ए ज प्रमाणे, कारण के जाण्या विना श्रद्धान केवी रीते थाय?
परंतु ज्ञानमां मिथ्या तथा सम्यग् एवी संज्ञा मिथ्यादर्शनसम्यग्दर्शनना निमित्तथी थाय छे.
जेम मिथ्याद्रष्टि वा सम्यग्द्रष्टि सुवर्णादिक पदार्थोने जाणे छे तो समान, परंतु ए ज जाणपणुं
मिथ्याद्रष्टिने मिथ्याज्ञान तथा सम्यग्द्रष्टिने सम्यग्ज्ञान नाम पामे छे. ए ज प्रमाणे सर्व
मिथ्याज्ञान
सम्यग्ज्ञाननुं कारण मिथ्यादर्शनसम्यग्दर्शन जाणवुं. तेथी ज्यां सामान्यपणे ज्ञान
श्रद्धानुं निरूपण होय त्यां ज्ञान कारणभूत छे, माटे तेने पहेलां कहेवुं, तथा श्रद्धान कार्यभूत
छे माटे तेने पाछळ कहेवुं; पण ज्यां मिथ्या सम्यग्ज्ञान
श्रद्धाननुं निरूपण होय त्यां तो श्रद्धान
कारणभूत होवाथी तेने पहेलां कहेवुं तथा ज्ञान कार्यभूत होवाथी तेने पाछळ कहेवुं.
प्रश्नःज्ञानश्रद्धान तो युगपत् होय छे, तो तेमां कारणकार्यपणुं केवी
रीते कहो छो?
उत्तरः‘ए होय तो ए होय’ ए अपेक्षाए कारणकार्यपणुं होय छे. जेम दीपक
अने प्रकाश ए बंने युगपत् होय छे, तोपण दीपक होय तो प्रकाश होय, तेथी दीपक कारण
छे अने प्रकाश कार्य छे. ए ज प्रमाणे ज्ञान
श्रद्धानने पण छे अथवा मिथ्यादर्शनमिथ्याज्ञानने
तथा सम्यग्दर्शनसम्यग्ज्ञानने कारणकार्यपणुं जाणवुं.
प्रश्नःजो मिथ्यादर्शनना संयोगथी ज ज्ञान मिथ्याज्ञान नाम पामे छे तो एक
मिथ्यादर्शनने ज संसारनुं कारण कहेवुं जोईए, पण अहीं मिथ्याज्ञान जुदुं शा माटे कह्युं?
उत्तरःज्ञाननी ज अपेक्षाए तो मिथ्याद्रष्टि वा सम्यग्द्रष्टिने क्षयोपशमथी थयेला
यथार्थ ज्ञानमां कांई विशेष नथी तथा ते ज्ञान केवळज्ञानमां पण जई मळे छे, जेम नदी
समुद्रमां जई मळे छे; तेथी ज्ञानमां कांई दोष नथी, परंतु क्षयोपशम ज्ञान ज्यां लागे त्यां
एक ज्ञेयमां लागे. हवे आ मिथ्यादर्शनना निमित्तथी ते ज्ञान अन्य ज्ञेयोमां तो लागे पण
प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्वोनो यथार्थ निर्णय करवामां न लागे ए ज ज्ञानमां दोष थयो, अने
तेने ज मिथ्याज्ञान कह्युं. तथा जीवादि तत्त्वोनुं यथार्थ श्रद्धान न थाय ते आ श्रद्धानमां दोष
थयो तेथी तेने मिथ्यादर्शन कह्युं. ए प्रमाणे लक्षणभेदथी मिथ्यादर्शन
मिथ्याज्ञान जुदां कह्यां
छे. ए प्रमाणे मिथ्याज्ञाननुं स्वरूप कह्युं. तेने तत्त्वज्ञानना अभावथी अज्ञान कहीए छीए
तथा पोतानुं प्रयोजन साधतुं नथी माटे तेने ज कुज्ञान पण कहीए छीए. हवे मिथ्याचारित्रनुं
स्वरूप कहे छे.
मिथ्याचारित्रनुं स्वरुप
चारित्रमोहना उदयथी कषायभाव थाय छे, तेनुं नाम मिथ्याचारित्र छे. अहीं पोतानी
स्वभावरूप प्रवृत्ति नथी. (‘‘आ सुखी छे.’’) एवी जूठी परस्वभावरूप प्रवृत्ति करवा इच्छे
चोथो अधिकारः मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रनुं विशेष निरूपण ][ ८९