Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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प्रश्नःशरीरनी अवस्था वा बाह्य पदार्थोमां इष्टअनिष्टपणुं मानवानुं
प्रयोजन तो भासतुं नथी अने इष्टअनिष्ट मान्या विना रह्युं जतुं नथी तेनुं शुं कारण?
उत्तरःआ जीवने चारित्रमोहना उदयथी रागद्वेषभाव थाय छे अने ते भाव
कोई पदार्थना आश्रय विना थई शकता नथी. जेम राग थाय तो कोई पदार्थोमां थाय छे,
अने द्वेष थाय ते पण कोई पदार्थमां ज थाय छे, ए प्रमाणे ए पदार्थोने तथा राग
द्वेषने
निमित्तनैमित्तिक संबंध छे. तेमां विशेषता ए छे के कोई पदार्थ तो मुख्यपणे रागनुं कारण
छे तथा कोई पदार्थ मुख्यपणे द्वेषनुं कारण छे, कोई पदार्थ कोईने कोई काळमां रागनुं कारण
थाय छे त्यारे कोईने कोई काळमां द्वेषनुं कारण थाय छे. अहीं एटलुं समजवुं के एक कार्य
थवामां अनेक कारणोनी आवश्यकता होय छे. रागादिक थवामां अंतरंग कारण तो मोहनो
उदय छे, ते तो बळवान छे तथा बाह्य कारण पदार्थ छे ते बळवान नथी. महामुनिने मोह
मंद होवाथी बाह्य पदार्थोनां निमित्त होवा छतां पण तेमने राग
द्वेष ऊपजतो नथी तथा
पापी जीवोने तीव्र मोह होवाथी बाह्य कारणो न होवा छतां पण तेमने संकल्पथी ज राग
द्वेष थाय छे. माटे मोहनो उदय थतां ज रागादिक थाय छे. त्यां जे बाह्य पदार्थना आश्रय
वडे रागभाव थतो होय तेमां प्रयोजन विना वा कंईक प्रयोजनसहित इष्टबुद्धि होय छे तथा
जे पदार्थोना आश्रय वडे द्वेषभाव थतो होय तेमां प्रयोजन विना वा कंईक प्रयोजनसहित
अनिष्टबुद्धि थाय छे. तेथी मोहना उदयथी पदार्थोने इष्ट
अनिष्ट मान्या विना रह्युं जतुं नथी.
ए प्रमाणे पदार्थोमां इष्टअनिष्टबुद्धि थतां रागद्वेषरूप परिणमन थाय छे तेनुं नाम
मिथ्याचारित्र जाणवुं.
वळी ए रागद्वेषनां ज विशेषो क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक,
भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद अने नपुंसकवेदरूप कषायभाव छे, ए बधा आ
मिथ्याचारित्रना ज भेद समजवा. एनुं वर्णन पहेलां ज करी गया. ए मिथ्याचारित्रमां
स्वरूपाचरण चारित्रनो अभाव होवाथी तेने अचारित्र पण कहीए छीए, तथा ए परिणाम
मटता नथी वा विरक्त नथी तेथी तेने असंयम वा अविरति पण कहीए छीए. कारण के
पांच इन्द्रियो अने मनना विषयोमां तथा पांच स्थावर अने एक त्रसनी हिंसामां स्वच्छंदपणुं
होय, तेना त्यागरूप भाव न थाय ए ज असंयम वा बार प्रकारनी अविरति कही छे.
कषायभाव थतां ज एवां कार्यो थाय छे तेथी मिथ्याचारित्रनुं नाम असंयम वा अविरति
जाणवुं. वळी एनुं ज नाम अव्रत पण जाणवुं. कारण के हिंसा, अनृत, चोरी, अब्रह्मचर्य
अने परिग्रह ए पापकार्योमां प्रवृत्तिनुं नाम अव्रत छे. अने तेनुं मूळ कारण प्रमत्तयोग छे.
ए प्रमत्तयोग कषायमय छे तेथी मिथ्याचारित्रनुं नाम अव्रत पण कहीए छीए. ए प्रमाणे
मिथ्याचारित्रनुं स्वरूप कह्युं.
चोथो अधिकारः मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रनुं विशेष निरूपण ][ ९३