Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Mohano Mahima.

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ए प्रमाणे संसारी जीवने मिथ्यादर्शनमिथ्याज्ञानमिथ्याचारित्ररूप परिणमन अनादि-
काळथी छे. एवुं परिणमन एकेन्द्रियादिथी असंज्ञी सुधी सर्व जीवोने होय छे तथा संज्ञी
पंचेन्द्रियोमां सम्यग्द्रष्टि विना अन्य सर्व जीवोनुं एवुं परिणमन होय छे. वळी ए परिणमन
जेवुं ज्यां संभवे तेवुं त्यां जाणवुं. जेम एकेन्द्रियादिकने इन्द्रियादिकनी हीनता
अधिकता होय
छे वा धनपुत्रादिकनो संबंध मनुष्यादिकने ज होय छे. तेना निमित्तथी मिथ्यादर्शनादिकनुं
वर्णन कर्युं छे त्यां जेवा विशेषो संभवे तेवा समजवा. जेम एकेन्द्रियादिक जीवो इन्द्रिय
शरीरादिकनां नाम पण जाणता नथी, परंतु ए नामना अर्थरूप भावमां पूर्वोक्त प्रकारे
परिणमन होय छे. जेम
‘‘हुं स्पर्श वडे स्पर्शुं छुं, शरीर मारुं छे.’’ ए प्रमाणे तेओ नाम
जाणता नथी तोपण तेना अर्थरूप जे भाव छे ते-रूप तेओ परिणमे छे. अने मनुष्यादिक
कोई नाम पण जाणे छे तथा तेना भावरूप पण परिणमे छे. इत्यादि जे विशेषो संभवे
ते जाणी लेवा.
मोहनो महिमा
ए प्रमाणे आ जीवने मिथ्यादर्शनादिक भाव अनादिथी होय छे, नवीन ग्रहेला नथी.
जुओ तो खरा एनो महिमा केजे पर्याय धारण करे छे त्यां वगर शिखवाडे पण मोहना
उदयथी स्वयं एवुं ज परिणमन थाय छे. वळी मनुष्यादिकने सत्य विचार थवानां कारणो
मळवा छतां पण सम्यक्परिणमन थतुं नथी. श्रीगुरुना उपदेशनुं निमित्त बने अने तेओ
वारंवार समजावे छतां आ जीव कांई विचार ज करतो नथी. वळी पोताने पण प्रत्यक्ष भासे
ते तो न माने अने अन्यथा ज माने छे. ते केवी रीते ते अहीं कहीए छीएः
मरण थतां शरीर अने आत्मा प्रत्यक्ष जुदा थाय छे, एक शरीरने छोडी आत्मा अन्य
शरीर धारण करे छे, ते व्यंतरादिक पोताना पूर्व भवनो संबंध प्रगट करता जोईए छीए,
तोपण आ जीवने शरीरथी भिन्नबुद्धि थई शकती नथी. स्त्री
पुत्रादिक प्रत्यक्ष पोताना स्वार्थनां
सगां जोईए छीए, तेमनुं प्रयोजन न सधाय त्यारे विपरीत ज थतां जोईए छीए, छतां
आ जीव तेमां ममत्व करे छे अने तेमना अर्थे नरकादिमां जवाना कारणरूप नाना प्रकारनां
पाप उपजावे छे. धनादिक सामग्री कोईनी कोईने थती जोईए छीए, छतां आ जीव तेने
पोतानी माने छे. वळी शरीरनी अवस्था वा बाह्य सामग्री स्वयं उपजती
विणसती जोईए
छीए, छतां आ जीव तेनो निरर्थक पोते कर्ता थाय छे. त्यां जो पोतानी इच्छानुसार कार्य
थाय तेने तो कहे के
‘‘आ में कर्युं’’, अने तेथी अन्यथा थाय तो कहे के‘‘हुं शुं करुं?
आम ज थवा योग्य हतुं, वा आम केम थयुं?’’ एम माने छे. पण कां तो सर्वना कर्ता
ज रहेवुं हतुं अगर कां तो अकर्ता ज रहेवुं हतुं! पण आ जीवने तेनो कांई विचार नथी.
मरण अवश्य थशे एम तो जाणे, पण मरणना निश्चयवडे पोते कांई कर्तव्य करे नहि,
९४ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक