मात्र वर्तमान पर्याय संबंधी ज जतन कर्या करे छे. ए मरणना निश्चयथी कोई वेळा तो कहे
के – ‘‘हुं मरीश अने शरीरने बाळी मूकशे,’’ त्यारे कोई वेळा कहे के – ‘‘मने बाळी मूकशे,’’
कोई वेळा कहे के – ‘‘जश रह्यो तो हुं जीवतो ज छुं,’’ त्यारे कोई वेळा कहे – ‘‘पुत्रादिक रहेशे
तो हुं ज जीवुं छुं.’’ ए प्रमाणे मात्र बहावरानी माफक बके छे पण कांई सावधानता नथी.
पोताने परलोकमां प्रत्यक्ष जवानुं जाणे छतां ए संबंधी तो कांई पण इष्ट – अनिष्टनो उपाय
करतो नथी, पण अहीं पुत्र – पौत्रादिक मारी संततिमां घणा काळ सुधी इष्ट रह्या करे, अनिष्ट
न थाय एवा अनेक उपाय करे. कोईना परलोक गया पछी आ लोकनी सामग्रीवडे उपकार
थयो जोयो नथी, परंतु आ जीवने परलोक होवानो निश्चय थवा छतां पण मात्र आ लोकनी
सामग्रीनुं ज जतन रहे छे. वळी विषय-कषायनी प्रवृत्तिवडे वा हिंसादि कार्यवडे पोते दुःखी
थाय, खेदखिन्न थाय, अन्यनो वेरी थाय, आ लोकमां निंदापात्र बने तथा परलोकमां बूरुं
थाय ए बधुं पोते प्रत्यक्ष जाणे तोपण ए ज कार्योमां प्रवर्ते, – इत्यादि अनेक प्रकारे प्रत्यक्ष
भासे तेने पण अन्यथा श्रद्धान करे – जाणे – आचरे ए बधुं मोहनुं ज माहात्म्य छे.
ए प्रमाणे आ जीव मिथ्यादर्शन – ज्ञान – चारित्ररूप अनादि काळथी परिणमे छे अने
ए ज परिणमनवडे संसारमां अनेक प्रकारनां दुःख उपजाववावाळां कर्मोनो संबंध थाय छे.
ए ज भाव दुःखोनुं बीज छे, अन्य कोई नथी. माटे हे भव्य! जो तुं दुःखथी
मुक्त थवा इच्छे छे तो ए मिथ्यादर्शनादिक विभावभावोनो अभाव करवो ए ज
कार्य छे, ए कार्य करवाथी तारुं परम कल्याण थशे.
इति श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक नाम शास्त्र विषे मिथ्यादर्शन-ज्ञान
चारित्र निरूपक चोथो अधिकार समाप्त
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