तेम ब्रह्मादिक पोते कामक्रोधरूप चेष्टा करी पोताना नीपजावेला लोकोमां प्रवृत्ति करावे अने
ए लोको तेम प्रवर्ते त्यारे तेमने नरकादिकमां नाखे, कारण के – ए भावोनुं फल नरकादिक ज
शास्त्रोमां लख्युं छे. तो एवा प्रभुने भलो केम मनाय?
वळी ते ‘‘भक्तोनी रक्षा अने दुष्टोनो निग्रह करवो’’ ए प्रयोजन कह्युं. परंतु
भक्तजनोने दुःखदायक जे दुष्टो थया ते परमेश्वरनी इच्छाथी थया के इच्छा विना थया?
जो इच्छाथी थया तो जेम कोई पोताना सेवकने पोते ज कोईने कही मरावे अने वळी पछी
ते मारवावाळाने पोते मारे तो एवा स्वामीने भलो केम कहेवाय? तेम जे पोताना भक्तोने
पोते ज इच्छावडे दुष्टो द्वारा पीडित करावे अने पछी ए दुष्टोने पोते अवतार धारी मारे
तो एवा ईश्वरने भलो केम कहेवाय?
तुं कहीश के — ‘‘इच्छा विना दुष्टो थया’’ तो कां तो परमेश्वरने एवुं भविष्यनुं ज्ञान
नहि होय के – मारा भक्तोने दुष्टो दुःख आपशे, अगर पहेलां एवी शक्ति नहि होय के –
तेमने एवा थवा ज न दे. वळी एवां कार्य माटे तेणे अवतार धार्यो, पण शुं अवतार धार्या
विना तेनामां शक्ति हती के नहोती? जो शक्ति हती तो अवतार शा माटे धार्यो? तथा
जो नहोती तो पाछळथी सामर्थ्य थवानुं कारण शुं थयुं?
त्यारे ते कहे छे के — ‘‘एम कर्या विना परमेश्वरनो महिमा केम प्रगट थाय?’’ तेने
अमे पूछीए छीए के – पोताना महिमा माटे पोताना अनुचरोनुं पालन करे तथा प्रतिपक्षीओनो
निग्रह करे ए ज राग – द्वेष छे अने राग – द्वेष तो संसारी जीवोनुं लक्षण छे. हवे जो
परमेश्वरने पण राग – द्वेष होय छे तो अन्य जीवोने राग – द्वेष छोडी समताभाव करवानो
उपदेश शा माटे आपे छे? वळी तेणे राग – द्वेष अनुसार कार्य करवुं विचार्युं पण थोडो वा
घणो काळ लाग्या विना कार्य थाय नहि, तो एटलो काळ पण परमेश्वरने आकुलता तो थती
ज हशे? वळी जेम कोई कार्यने हलको मनुष्य ज करी शके ते कार्यने राजा पोते ज करे
तो तेथी कंई राजानो महिमा थतो नथी पण ऊलटी निंदा ज थाय छे; तेम जे कार्यने राजा
वा व्यंतरदेवादिक करी शके ते कार्यने परमेश्वर पोते अवतार धारी करे छे एम मानीए,
तो तेथी कंई परमेश्वरनो महिमा थतो नथी पण ऊलटी निंदा ज थाय छे.
वळी महिमा तो कोई अन्य होय तेने बताववामां आवे छे पण तुं तो अद्वैतब्रह्म
माने छे तो ए परमेश्वर कोने महिमा बतावे छे? तथा महिमा बताववानुं फळ तो स्तुति
कराववी ए छे, तो ते कोनी पासे स्तुति कराववा इच्छे छे? वळी तुं कहे छे के – ‘‘सर्व जीव
परमेश्वरनी इच्छानुसार प्रवर्ते छे.’’ हवे जो तेने पोतानी स्तुति कराववानी इच्छा छे तो
बधाने पोतानी स्तुतिरूप ज प्रवर्तावो शा माटे अन्य कार्य करवुं पडे? तेथी महिमा अर्थे पण
एवां कार्य बनतां नथी.
पांचमो अधिकारः अन्यमत निराकरण ][ १०५