Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Shreshth Siddhpad Pahela Arihantne Namaskar Karavanu Karan.

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श्रेÌ सिद्धपद पहेलां अर्हंतने नमस्कार करवानुं कारण
अहीं सिद्ध भगवाननी पहेलां अर्हंतने नमस्कार कर्या तेनुं शुं कारण? एवो कोईने संदेह
उपजे तेनुं समाधानःनमस्कार करीए छीए ए तो पोतानुं प्रयोजन साधवानी अपेक्षाए
करीए छीए. हवे अर्हंतथी उपदेशादिकनुं प्रयोजन विशेष सिद्ध थाय छे माटे तेमने पहेलां
नमस्कार कर्या छे.
ए प्रमाणे अर्हंतादिकना स्वरूपनुं चिंतवन कर्युं कारण के स्वरूप चिंतवन करवाथी विशेष
कार्य सिद्ध थाय छे. वळी ए अर्हंतादिने पंचपरमेष्ठी पण कहीए छीए. कारण जे सर्वोत्कृष्ट
इष्ट होय तेनुं नाम परमेष्ट छे. पांच जे परमेष्ट तेना समाहार समुदायनुं नाम
पंचपरमेष्ठी
जाणवुं.
वळी श्री वृषभ, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चंद्रप्रभ,
पुष्पदंत, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनंत, धर्म, शांति, कुंथु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत,
नमि, नेमि, पार्श्व अने वर्धमान ए नामना धारक, चोवीस तीर्थंकर आ भरतक्षेत्रमां वर्तमान
धर्मतीर्थना नायक थया. गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान अने निर्वाण कल्याणको विषे इन्द्रादिक देवो द्वारा
विशेष पूज्य थई हाल सिद्धालयमां बिराजमान छे तेमने अमारा नमस्कार हो.
वळी श्री सीमंधर, युगमंधर, बाहु, सुबाहु, संजातक, स्वयंप्रभ, वृषभानन, अनंतवीर्य,
सूरप्रभ, विशालकीर्ति, वज्रधर, चंद्रानन, चंद्रबाहु, भुजंगम, इश्वर, नेमप्रभ, वीरसेन, महाभद्र,
देवयश, अने अजितवीर्य ए नामना धारक पांच मेरु संबंधी विदेहक्षेत्रमां वीस तीर्थंकर हाल
केवळज्ञान सहित बिराजमान छे तेमने अमारा नमस्कार हो. जोके परमेष्ठीपदमां तेमनुं
गर्भितपणुं छे तोपण वर्तमान काळमां तेमने विशेष जाणी अहीं जुदा नमस्कार कर्या छे.
वळी त्रण लोकमां जे अकृत्रिम जिनबिंब बिराजे छे तथा मध्य लोकमां विधिपूर्वक जे
कृत्रिम जिनबिंब बिराजे छे, जेमना दर्शनादिकथी स्व-पर भेदविज्ञान थाय छे, कषाय मंद थई
शांत भाव थाय छे तथा एक धर्मोपदेश विना अन्य पोताना हितनी सिद्धि जेवी श्री तीर्थंकर
केवळीना दर्शनादिकथी थाय छे तेवी ज अहीं थाय छे ते सर्व जिनबिंबोने अमारा नमस्कार हो.
वळी केवळी भगवाननी दिव्यध्वनि द्वारा प्ररूपित उपदेश अनुसार श्रीगणधरदेव द्वारा
रचित अंग-प्रकीर्णक अनुसार अन्य आचार्यादिक द्वारा रचेला ग्रंथादिक छे ते सर्व जिनवचन
छे. स्याद्वाद चिह्न द्वारा ओळखवा योग्य छे, न्यायमार्गथी अविरुद्ध छे माटे प्रामाणिक छे तथा
जीवोने तत्त्वज्ञाननुं कारण छे माटे उपकारी छे तेमने अमारा नमस्कार हो.
वळी चैत्यालय, आर्जिका, उत्कृष्ट श्रावक आदि द्रव्य, तीर्थक्षेत्रादि क्षेत्र, कल्याणकाळ
प्रथम अधिकारः पीठबंध प्ररूपक ][ ७
* ‘‘परमे तिष्टति इति परमेष्ठी’’
आ प्रमाणे व्युत्पत्ति अर्थ थाय छे. अनुवादक.