Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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जोवामां आवे छेपापनो उदय देखातो नथी, अने कोई एवुं मंगळ करनारने पण सुख
देखवामां आवतुं नथी परंतु पापनो उदय देखाय छे माटे तेमां पूर्वोक्त मंगलपणुं केवी
रीते बने?
उत्तरःजीवोना संक्लेशविशुद्ध परिणाम अनेक जातिना छे जेथी पूर्वे अनेक
काळमां बांधेला कर्म एक काळमां उदय आवे छे, माटे जेम जेणे पूर्वे घणा धननो संचय कर्यो
होय तेने तो कमाया सिवाय पण धन जोवामां आवे छे
देवुं देखातुं नथी, परंतु जेने पूर्वनुं
घणुं ॠण होय तेने धन कमावा छतां पण देणदार देखवामां आवे छेधन देखातुं नथी. परंतु
विचार करतां कमावुं ए धन थवानुं ज कारण छे पण ॠणनुं कारण नथी. ते प्रमाणे ज पूर्वे
जेणे घणुं पुण्य बांध्युं होय तेने अहीं एवां मंगळ कर्या विना पण सुख जोवामां आवे छे,
पापनो उदय देखातो नथी. वळी जेणे पूर्वे घणुं पाप बांध्युं होय तेने अहीं एवां मंगळ करवा
छतां पण सुख देखातुं नथी, पापनो उदय देखाय छे, परंतु विचार करतां एवां मंगळ तो सुखनुं
ज कारण छे पण पाप-उदयनुं कारण नथी. ए प्रमाणे पूर्वोक्त मंगळमां मंगळपणुं बने छे.
प्रश्नःए वात साची, परंतु जिनशासनना भक्त देवादिक छे तेओए एवां
मंगळ करवावाळाने सहायता न करी तथा मंगळ न करनारने दंड न आप्यो तेनुं शुं
कारण?
उत्तरःजीवोने सुखदुःख थवानुं प्रबळ कारण पोतानां कर्मोनो उदय छे अने ते
अनुसार बाह्य निमित्त बनी आवे छे माटे पापनो जेने उदय होय तेने एवी सहायतानुं निमित्त
बनतुं नथी तथा जेने पुण्यनो उदय होय तेने दंडनुं निमित्त बनतुं नथी. ए निमित्त केवी रीते
न बने ते कहीए छीएः
देवादिक छे तेओ क्षयोपशमज्ञानथी सर्वने युगपत् जाणी शकता नथी तेथी मंगळ
करनारने तथा नहीं करनारने जाणवानुं कोई देवादिकने कोई काळमां बने छे माटे जो तेने
जाणवामां ज न आवे तो सहाय के दंड ते केवी रीते करी शके? तथा जाणपणुं होय ते वेळा
पोतानामां जो अति मंद कषाय होय तो तेने सहाय वा दंड देवाना परिणाम ज थता नथी
अने जो तीव्र कषाय होय तो धर्मानुराग थतो नथी. वळी मध्यम कषायरूप ए कार्य करवाना
परिणाम थाय छतां पोतानी शक्ति न होय तो ते शुं करे? ए प्रमाणे सहाय के दंड देवानुं
निमित्त बनतुं नथी. पोतानी शक्ति होय, धर्मानुरागरूप मंदकषायना उदयथी तेवा ज परिणाम
थाय ते समयमां अन्य जीवोना धर्म
अधर्मरूप कर्तव्यने जाणे, तो कोई देवादिक कोई धर्मात्माने
सहाय करे वा कोई अधर्मीने दंड दे. हवे ए प्रमाणे कार्य थवानो कोई नियम तो नथी. ए
प्रमाणे उपरना प्रश्ननुं समाधान कर्युं. अहीं आटलुं समजवा योग्य छे के
सुख थवानी वा दुःख
थवानी, सहाय कराववानी वा दुःख अपाववानी जे इच्छा छे ते कषायमय छे, तत्कालमां वा
भाविमां दुःखदायक छे. माटे एवी इच्छा छोडी अमे तो एक वीतराग विशेषज्ञान थवाना अर्थी
१० ][ मोक्षमार्गप्रकाशक