चाले?
अनुसार तेओ ग्रंथ-रचना करे छे. हवे ए ग्रंथमां तो असत्यार्थ पद केवी रीते गूंथी शकाय?
तथा अन्य आचार्यादि ग्रंथ-रचना करे छे तेओ पण यथायोग्य सम्यग्ज्ञानना धारक छे. वळी
तेओ मूळ ग्रंथोनी परम्परा द्वारा ग्रंथ-रचना करे छे, जे पदोनुं पोताने ज्ञान न होय तेनी तो
तेओ रचना करता नथी, पण जे पदोनुं ज्ञान होय तेने ज सम्यग्ज्ञानप्रमाणपूर्वक बराबर गूंथे
छे. हवे प्रथम तो एवी सावधानतामां असत्यार्थ पद गूंथ्यां जाय नहि तथापि कदाचित् पोताने
पूर्व ग्रंथोनां पदोनो अर्थ अन्यथा ज भासे अने पोतानी प्रमाणतामां पण ते ज प्रमाणे बेसी
जाय तो तेनुं कांई तेने वश नथी. परंतु एम कोईकने ज भासे, सर्वने नहि. माटे जेने सत्यार्थ
भास्यो होय ते तेनो निषेध करी परंपरा चालवा दे नहि. वळी आटलुं विशेष जाणवुं के
अन्यथा जाणवा छतां पण, तेने जिननी आज्ञा मानवाथी जीवनुं बूरुं न थाय एवा कोई सूक्ष्म
अर्थमां कोईने कोई अर्थ अन्यथा प्रमाणमां लावे तोपण तेनो विशेष दोष नथी. श्री
गोम्मटसारमां पण कह्युं छे केः
वर्णन छे तेवुं ज वर्णन करीश, अथवा कोई ठेकाणे पूर्व ग्रन्थोमां सामान्य गूढ वर्णन छे तेनो
विशेषभाव प्रगट करी अहीं वर्णन करीश. ए प्रमाणे वर्णन करवामां हुं घणी सावधानी राखीश
तेम छतां कोई ठेकाणे सूक्ष्म अर्थनुं अन्यथा वर्णन थई जाय तो विशेष बुद्धिमान होय तेओ
तेने बराबर करी शुद्ध करे एवी मारी प्रार्थना छे. ए प्रमाणे आ शास्त्र रचवानो निश्चय कर्यो.