Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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वळी जेने शास्त्र वांची आजीविकादि लौकिक कार्य साधवानी इच्छा न होय, कारण के
जो आशावान होय तो यथार्थ उपदेश आपी शके नहि, तेने तो कंईक श्रोताना अभिप्रायानुसार
व्याख्यान करी पोतानुं प्रयोजन साधवानो ज अभिप्राय रहे. वळी श्रोताओथी वक्ताओनुं पद
ऊंचुं छे. परंतु जो वक्ता लोभी होय तो ते श्रोताथी हीन थई जाय अने श्रोता ऊंचा थाय.
वळी तेनामां तीव्र क्रोध
मान न होय, कारण तीव्र क्रोधी मानीनी निंदा ज थाय अने श्रोता तेनाथी
डरता रहे तो तेनाथी पोतानुं हित केम थाय? वळी पोते ज जुदा जुदा प्रश्न उठावी तेनो उत्तर
करे अथवा अन्य जीव अनेक प्रकारथी विचारपूर्वक प्रश्न करे तो मिष्ट वचन द्वारा जेम तेनो
संदेह दूर थाय तेम समाधान करे तथा जो पोतानामां उत्तर आपवानुं सामर्थ्य न होय, तो
एम कहे के
मने तेनुं ज्ञान नथी पण कोई विशेष ज्ञानीने पूछी हुं उत्तर आपीश. अथवा कोई
अवसर पामी तमने कोई विशेष ज्ञानी मळे तो तेने पूछी संदेह दूर करशो अने मने पण
दर्शावशो. कारण के आम न होय अने अभिमानपूर्वक पोतानी पंडितता जणाववा जो प्रकरण
विरुद्ध अर्थ उपदेशे तो विरुद्ध श्रद्धान थवाथी श्रोताओनुं बूरुं थाय अने जैनधर्मनी निंदा पण
थाय. अर्थात् जो एवो न होय तो श्रोतानो संदेह दूर थाय नहि, पछी कल्याण तो क्यांथी
थाय? तथा जैनमतनी प्रभावना पण थाय नहि. वळी जेनामां अनीतिरूप लोकनिंद्य कार्योनी
प्रवृत्ति न होय, कारण लोकनिंद्य कार्यो वडे ते हास्यनुं स्थानक थई जाय तो तेना वचनने प्रमाण
कोण करे? उलटो जैनधर्मने लजावे. वळी ते कुलहीन, अंगहीन अने स्वर भंगतावाळो न होय
पण मिष्टवचनी तथा प्रभुतायुक्त होय ते ज लोकमां मान्य होय. जो एवो न होय तो
वक्तापणानी महत्ता शोभे नहि. ए प्रमाणे उपरना गुणो तो वक्तामां अवश्य जोईए. श्री
आत्मानुशासनमां पण कह्युं छे केः
प्राज्ञः प्राप्तसमस्तशास्त्रहृदयः प्रव्यक्तलोकस्थितिः,
प्रास्ताशः प्रतिभापरः प्रशमवान् प्रागेव दृष्टोत्तरः
प्रायःप्रश्नसहः प्रभुः परमनोहारी परानिन्दया,
ब्रूयाद्धर्मकथां गणी गुणनिधिः प्रस्पष्टमिष्टाक्षरः
।।।।
अर्थःजे बुद्धिमान होय, समस्त शास्त्रोना रहस्यने पाम्यो होय,
लोकमर्यादा जेने प्रगट थई होय, आशा जेनी अस्त थई होय, कांतिमान होय,
उपशमवंत होय, प्रश्न थतां पहेलां ज उत्तरने जे जाणतो होय, बाहुल्यपणे अनेक
प्रश्नोनो सहन करवावाळो होय, प्रभुतायुक्त होय, परना वा पर द्वारा पोताना
निंदारहितपणावडे परना मननो हरवावाळो होय, गुणनिधान होय अने स्पष्टमिष्ट
जेनां वचन होय एवो सभानो नायक धर्मकथा कहे.
१६ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक