Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration).

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वळी जे मद मत्सर भावपूर्वक शास्त्र सांभळे छे, वाद अने तर्क करवानो ज जेनो
अभिप्राय छे, महंतता वा लोभादिक प्रयोजन अर्थे जे शास्त्र सांभळे छे तथा शास्त्र तो सांभळे
छे पण ते सुहावतुं नथी एवा श्रोताओने तो केवळ पापबंध ज थाय छे. ए प्रमाणे
*श्रोताओनुं
स्वरूप जाणवुं. आ ठेकाणे ए ज प्रमाणे शीखवुंशीखववुं वगेरे जेने होय तेनुं स्वरूप पण
यथासंभव समजवुं.
प्रथम अधिकारः पीठबंध प्ररूपक ][ १९
* अहीं प्रसंगने अनुसरीने श्री सुद्रष्टतरंगिणी अनुसार श्रोताओना जुदाजुदा प्रकार दर्शावीए
छीए.
१. जे जीव उपदेश तो सांभळे, पूछे, भणे, याद राखे तथा घणा काळ सुधी बाह्य धर्मक्रिया
पण करे परंतु अंतरंग पापबुद्धि छोडे नहि, कुगुरुकुधर्मने पूजवानीमानवानी श्रद्धा मटे नहि, क्रोध
मानादि कषाय मटे नहि तथा अंतःकरणमां जिनवाणी अत्यंत प्रेमपूर्वक रुचे नहि तेवा श्रोता पाषाण
समान जाणवा.
२. जे दररोज शास्त्र सांभळे, सांभळती वेळा सामान्य याद रहे पण पछी भूली जाय पण
सांभळेलां वचन हृदयमां टके नहि ते फूट्या घडा जेवा श्रोता जाणवा.
३. जेम मेंढो तेने पालन करनारने ज माथुं मारे तेम जे श्रोता अनेक द्रष्टांत, युक्ति, शिखामण
अने शास्त्ररहस्य समजपूर्वक संभळावनार महा उपकारी एवा वक्तानो ज द्वेषी थाय, अरे तेनो ज
घात तथा बुरुं विचारे तेवा श्रोता मेंढा समान जाणवा.
४. जेम घोडो घासदाणो देवावाळा रक्षकने ज मारे, करडे, बचकां भरवा जाय तेम जे श्रोता
जेनी पासेथी उपदेश सांभळे तेनाथी ज द्वेष करवा लागी जाय, तेना अवगुण अवर्णवाद बोलवा लागे
तेवा श्रोता घोडा समान जाणवा.
५. जेम चाळणी सूक्ष्म आटाने तो बहार काढी नाखे के जे प्रयोजनरूप छे अने अप्रयोजनरूप
भूसुंकांकरा वगेरे संग्रह करी राखे तेम जे श्रोता उपदेशदाता वक्ताना कोई गुणने ग्रहण न करतां
मात्र तेना अवगुणने ज ग्रहण करे, शास्त्रमां दान वा चैत्यालयप्रभावनादि करवानी वात आवे तो
आ मूर्ख एम समजे केआ उपदेश मारा उपर देवाय छे, हुं धनवान छुं तेथी आडकतरी रीते मने
धन खर्चवानुं कहे छे, पण मारी पासे धन क्यां छे? तप संबंधी व्याख्यान चालतुं होय तो आ एम
माने के
हुं शरीरे पुष्ट छुं तेथी आ मने ज कहे छे के तप करो, पण माराथी तप क्यां थई शके
एम छे? दान, पूजा अने शीलसंयमादिनो उपदेश चालतो होय त्यारे आ कां तो ऊंघे अथवा विभ्रमचित्त
राखी सांभळे नहि, सभामां कोई कोईनी निंदा अथवा कलहकथा करवा लागे तो तेने ध्यानपूर्वक सांभळे,
सभामां गुण
दोषनी सामान्य प्रकारे वात चालती होय तो आ मूर्ख एम समजे के आ बधुं मारा
उपर कहे छे. आवा श्रोता सभामां व्याख्यान सांभळवा आवीने पण केवळ पापबंध ज करे छे. वक्ताथी
ज दोषभाव के द्वेषभाव आणे छे पण वक्तानो गुण तो जरा पण ग्रहण करता नथी. आवा श्रोता
चाळणी समान जाणवा.
६. जेम पवनथी भरेली मसक उपरथी देखाय जल भरी पण अंदर तो जरा पण पाणी