थवानो मार्ग प्रकाशित थयो. जेम सूर्यने एवी इच्छा नथी के हुं मार्ग प्रकाशुं, परंतु स्वाभाविक
ज तेना किरणो फेलाय छे जेथी मार्गनुं प्रकाशन थाय छे. ते ज प्रमाणे श्री वीतराग केवळी
भगवानने एवी इच्छा नथी के अमे मोक्षमार्गने प्रगट करीए, परंतु स्वाभाविकपणे ज
अघातिकर्मना उदयथी तेमना शरीररूप पुद्गलो दिव्यध्वनिरूप परिणमे छे, जेनाथी मोक्षमार्गनुं
सहज प्रकाशन थाय छे. वळी श्री गणधर देवोने एवो विचार आव्यो के ज्यारे केवळीभगवानरूप
सूर्यनुं अस्तपणुं थशे त्यारे जीवो मोक्षमार्गने केवी रीते पामशे? अने मोक्षमार्ग पाम्या विना
जगतना जीवो दुःखने ज सहशे, एवी करुणाबुद्धिवडे अंगप्रकीर्णादिक ग्रन्थ जेवा महान दीपकोनो
जेम हंसने दूधमां पाणी भेळवी आपो तोपण ते पाणीने न पीतां मात्र दूधने ज अंगीकार
करे छे, कारण तेनी चांच ज एवा प्रकारनी होय छे के तेनो स्पर्श थतां ज पाणी अने दूधना अंशो
जुदा जुदा थई जाय छे, तेम शुद्ध द्रष्टिनो धारक भेदविज्ञानी आत्मा नाना प्रकारनो उपदेश सांभळी
पोतानी बुद्धिथी निर्धार करे, परम पुरुषोनां वाक्योनी साथे पोते करेला निर्णयने सरखावे अने तेथी
जे तत्त्वज्ञानपूर्वक अर्थ निर्णय थाय तेने अंगीकार करे तथा अन्य सर्वने छोडे. आवा श्रोता हंस समान
जाणवा.
हवे नेत्र समान, दर्पण समान, त्राजवानी दांडी समान अने कसोटी समान चार प्रकारना महा
उत्तम श्रोताओनुं स्वरूप कहीए छीए.
जेम नेत्र भला – बूराने निर्णयरूप जोई शके छे तेम भला – बूरा उपदेशने निर्णयरूप जाणी
बूराने छोडी भला उपदेशनुं द्रढ श्रद्धान जेओ करे छे तेमने नेत्र समान श्रोता जाणवा.
जेम दर्पणमां पोतानुं मुख जोई ते उपर लागेली रज. मळ वगेरे धोई मुखने साफ करवामां
आवे छे तेम सम्यग् उपदेश सांभळी पोताना चैतन्यस्वभावमां लागेली कर्मरजने दूर करी आत्मप्रदेशो
निर्मळ करवानो जे उपाय करे छे ते दर्पण समान श्रोता जाणवा.
जेम त्राजवानी दांडी वडे ओछुं – वधतुं तरत जणाई आवे छे, वा ते दांडी ओछा – वधतानुं
जेम तोलन करे छे, तेम सद्गुरु द्वारा प्राप्त थयेला उपदेशने पोतानी बुद्धि वडे सम्यक्प्रकारे पूर्व
महापुरुषोनी आम्नायानुसार तोलन करे छे. वळी जे उपदेश पोताने अनुपयोगी लागे तेने तो छोडे
छे तथा अधिक फळदाता उपयोगी उपदेशने अंगीकार करे छे. आवा श्रोता त्राजवानी दांडी समान जाणवा.
जेम कसोटी उपर घसी भला – बूरा सुवर्णनी परीक्षा करवामां आवे छे तेम रूडा श्रोताओ
पोतानी सम्यग्बुद्धिरूप कसोटी उपर, प्राप्त थयेला उपदेशने चडावे अने तेमां हितकारी – अहितकारी
उपदेशने सम्यक् प्रकारे जाणी अहितकारीने छोडी हितकारीने ग्रहण करे ते श्रोता कसोटी समान जाणवा.
वळी सुश्रुषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, मनन, ऊह (प्रश्न), अपोह (उत्तर) अने तत्त्व -
निर्णय — ए आठ गुणो सहित जेनुं अंतःकरण होय तेवा श्रोता ज मोक्षाभिलाषी जाणवा.
ए प्रमाणे प्रसंगानुसार जुदा जुदा प्रकारना श्रोतानुं स्वरूप कह्युं.
(संग्राहक – अनुवादक)
२२ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक