थाय छे तथा भावकर्मना निमित्तथी द्रव्यकर्मोनो बंध थाय छे. फरी पाछो द्रव्यकर्मथी भावकर्म
अने भावकर्मथी द्रव्यकर्म
तीव्र उदय आवतां तीव्र कषाय थाय छे जेथी तीव्र नवीन बंध थाय छे; तथा कोई काळमां मंद
उदय आवतां मंद कषाय थाय छे जेथी नवीन बंध मंद थाय छे. वळी ए तीव्र
धारा प्रवाहरूप द्रव्यकर्म वा भावकर्मनी प्रवृत्ति जाणवी.
तो पुद्गलपरमाणुओनो पिंड छे तथा द्रव्यइन्द्रिय, द्रव्यमन, श्वासोच्छ्वास अने वचन ए
शरीरनां ज अंग छे, तेथी एने पण पुद्गलपरमाणुना पिंड जाणवां. ए प्रमाणे शरीर तथा
द्रव्यकर्म संबंधसहित जीवने एकक्षेत्रावगाहरूप बंधान थाय छे. जे शरीरना जन्मसमयथी मांडी
जेटली आयुनी स्थिति होय तेटला काळ सुधी शरीरनो संबंध रहे छे. आयु पूर्ण थतां मरण
थाय छे त्यारे ते शरीरनो संबंध छूटे छे अर्थात् शरीर अने आत्मा जुदा जुदा थई जाय छे.
वळी तेना अनन्तर समयमां वा बीजा, त्रीजा, चोथा समयमां जीव कर्मउदयना निमित्तथी नवीन
शरीर धारे छे त्यां पण ते पोतानी आयुस्थिति पर्यंत ते ज प्रमाणे संबंध रहे छे. फरी ज्यारे
मरण थाय छे त्यारे तेनाथी पण संबंध छूटी जाय छे. ए प्रमाणे पूर्व शरीरनुं छोडवुं, अने
नवीन शरीरनुं ग्रहण करवुं अनुक्रमे थया ज करे छे. वळी ते आत्मा जोके असंख्यात प्रदेशी
छे तोपण संकोच
तेना प्रमाणरूप रहे छे. वळी ए शरीरनां अंगभूत द्रव्यइन्द्रिय अने मन तेनी सहायथी जीवने
जाणपणानी प्रवृत्ति थाय छे तथा शरीरनी अवस्था अनुसार मोहना उदयथी जीव सुखी