Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Dravayakarma Ane Bhavkarma Nokarmanu Swaroop Ane Teni Pravrutti.

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द्रव्यकर्म अने भावकर्म
तथा आ प्रमाणे ए कर्म छे ते परमाणुरूप अनंत पुद्गलद्रव्योथी निपजावेलुं कार्य छे,
तेथी तेनुं नाम द्रव्यकर्म छे. तथा मोहना निमित्तथी मिथ्यात्वक्रोधादिरूप जीवना परिणाम छे
ते अशुद्ध भावथी निपजावेलुं कार्य छे, तेथी तेनुं नाम भावकर्म छे. द्रव्यकर्मना निमित्तथी भावकर्म
थाय छे तथा भावकर्मना निमित्तथी द्रव्यकर्मोनो बंध थाय छे. फरी पाछो द्रव्यकर्मथी भावकर्म
अने भावकर्मथी द्रव्यकर्म
ए ज प्रमाणे परस्पर कारणकार्यभाववडे संसारचक्रमां परिभ्रमण
थाय छे.
एटलुं विशेष जाणवुं के तीव्रमंद बंध होवाथी वा संक्रमणादि थवाथी वा एक काळमां
बांध्यां अनेक काळमां अने अनेक काळमां बांध्यां एक काळमां उदय आववाथी कोई काळमां
तीव्र उदय आवतां तीव्र कषाय थाय छे जेथी तीव्र नवीन बंध थाय छे; तथा कोई काळमां मंद
उदय आवतां मंद कषाय थाय छे जेथी नवीन बंध मंद थाय छे. वळी ए तीव्र
मंद कषायोना
अनुसारे पूर्वे बांधेला कर्मोनुं पण संक्रमणादि थाय तो थाय. ए प्रमाणे अनादि काळथी मांडी
धारा प्रवाहरूप द्रव्यकर्म वा भावकर्मनी प्रवृत्ति जाणवी.
नोकर्मनुं स्वरुप अने तेनी प्रवृत्ति
वळी नामकर्मना उदयथी शरीर थाय छे ते द्रव्यकर्मवत् किंचित् सुखदुःखनुं कारण छे,
माटे शरीरने नोकर्म कहीए छीए. अहीं ‘नो’ शब्द इषत् (अल्पता) वाचक जाणवो. हवे शरीर
तो पुद्गलपरमाणुओनो पिंड छे तथा द्रव्यइन्द्रिय, द्रव्यमन, श्वासोच्छ्वास अने वचन ए
शरीरनां ज अंग छे, तेथी एने पण पुद्गलपरमाणुना पिंड जाणवां. ए प्रमाणे शरीर तथा
द्रव्यकर्म संबंधसहित जीवने एकक्षेत्रावगाहरूप बंधान थाय छे. जे शरीरना जन्मसमयथी मांडी
जेटली आयुनी स्थिति होय तेटला काळ सुधी शरीरनो संबंध रहे छे. आयु पूर्ण थतां मरण
थाय छे त्यारे ते शरीरनो संबंध छूटे छे अर्थात् शरीर अने आत्मा जुदा जुदा थई जाय छे.
वळी तेना अनन्तर समयमां वा बीजा, त्रीजा, चोथा समयमां जीव कर्मउदयना निमित्तथी नवीन
शरीर धारे छे त्यां पण ते पोतानी आयुस्थिति पर्यंत ते ज प्रमाणे संबंध रहे छे. फरी ज्यारे
मरण थाय छे त्यारे तेनाथी पण संबंध छूटी जाय छे. ए प्रमाणे पूर्व शरीरनुं छोडवुं, अने
नवीन शरीरनुं ग्रहण करवुं अनुक्रमे थया ज करे छे. वळी ते आत्मा जोके असंख्यात प्रदेशी
छे तोपण संकोच
विस्तार शक्तिवडे शरीरप्रमाण ज रहे छे. विशेष एटलुं केसमुद्घात थतां
शरीरथी बहार पण आत्माना प्रदेशो फेलाय छे तथा अंतराल समयमां पूर्व शरीर छोड्युं हतुं
तेना प्रमाणरूप रहे छे. वळी ए शरीरनां अंगभूत द्रव्यइन्द्रिय अने मन तेनी सहायथी जीवने
जाणपणानी प्रवृत्ति थाय छे तथा शरीरनी अवस्था अनुसार मोहना उदयथी जीव सुखी
दुःखी
थाय छे. कोई वेळा तो जीवनी इच्छानुसार शरीर प्रवर्ते छे तथा कोई वेळा शरीरनी
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३४ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक