अवस्थानुसार जीव प्रवर्ते छे, तथा कोई वेळा जीव अन्यथा इच्छारूप प्रवर्ते छे अने पुद्गल
अन्यथा अवस्थारूप प्रवर्ते छे. ए प्रमाणे नोकर्मनी प्रवृत्ति जाणवी.
✾ नित्यनिगोद अने £तरनिगोद ✾
हवे अनादिकाळथी मांडी प्रथम तो आ जीवने नित्यनिगोदरूप शरीरनो संबंध होय छे.
त्यां नित्यनिगोदशरीरने धरी आयु पूर्ण थतां मरी फरी नित्यनिगोदशरीरने धारे छे. वळी पाछो
ए आयु पूर्ण करीने नित्यनिगोदशरीरने ज धारे छे. ए प्रमाणे अनंतानंत प्रमाण सहित
जीवराशि छे, ते अनादि काळथी त्यां ज जन्म – मरण कर्या करे छे. वळी त्यांथी छ महिना अने
आठ समयमां छसो आठ जीव नीकळे छे. तेओ नीकळीने अन्य पर्यायो धारण करे छे. तेओ
पृथ्वी, जळ, अग्नि, पवन अने प्रत्येक वनस्पतिरूप एकेन्द्रिय पर्यायोमां वा बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय,
चौरेन्द्रियरूप पर्यायोमां वा नरक, तिर्यंच, मनुष्य अने देवरूप पंचेन्द्रिय पर्यायोमां भ्रमण करे
छे. त्यां केटलाक काळ सुधी भ्रमण करी फरी पाछा निगोदपर्यायने प्राप्त थाय छे, तेने इतरनिगोद
कहे छे. त्यां केटलोक काळ रही त्यांथी नीकळी अन्य पर्यायोमां भ्रमण करे छे. हवे ए परिभ्रमण
करवानो उत्कृष्ट काळ पृथ्वी आदि स्थावर जीवोमां असंख्यात कल्पमात्र छे, बेइन्द्रियथी पंचेन्द्रिय
सुधी त्रस जीवोमां कंईक अधिक बे हजार सागर छे अने इतरनिगोदमां अढीपुद्गलपरावर्तन
मात्र छे. ए पण अनंत काळ छे. वळी इतरनिगोदथी नीकळी कोई जीव स्थावर पर्याय पामी
फरी पाछो निगोदमां जाय – एम एकेन्द्रिय पर्यायोमां उत्कृष्ट परिभ्रमणकाळ असंख्यात
पुद्गलपरावर्तनमात्र छे अने जघन्य काळ सर्वनो एक अंतर्मुहूर्त छे. ए प्रमाणे जीवने घणुं
तो एकेन्द्रिय पर्यायोनुं ज धारवुं बने छे. त्यांथी नीकळी अन्य पर्याय पामवो ए
काकतालीयन्यायवत् छे. ए प्रमाणे आ जीवने अनादि काळथी ज कर्मबंधनरूप रोग थयो छे.
✾ कर्मबंधानरुप रोगना निमित्तथी थती जीवनी अवस्थाओ ✾
हवे ए कर्मबंधनरूप रोगना निमित्तथी जीवनी केवी केवी अवस्थाओ थई रही छे ते
अहीं कहीए छीए. प्रथम तो आ जीवनो स्वभाव चैतन्य छे एटले सर्व द्रव्योना सामान्य
– विशेष स्वरूपने प्रकाशवावाळो छे. जेवुं एमनुं स्वरूप होय तेवुं पोताने प्रतिभासे छे एनुं
ज नाम चैतन्य छे. त्यां सामान्य स्वरूपप्रतिभासननुं नाम दर्शन छे तथा विशेष
स्वरूपप्रतिभासननुं नाम ज्ञान छे. हवे एवा स्वभाववडे त्रिकालवर्ती सर्वगुणपर्यायसहित सर्व
पदार्थोने प्रत्यक्ष युगपत् सहाय विना देखी – जाणी शके एवी शक्ति आत्मामां सदाकाळ छे.
✾ ज्ञान – दर्शनावरणकर्मोदयजन्य अवस्था ✾
परंतु अनादि ज ज्ञानावरण – दर्शनावरणनो संबंध छे, जेना निमित्तथी ए शक्तिनुं
व्यक्तपणुं थतुं नथी, ए कर्मोना क्षयोपशमथी किंचित् मतिज्ञान वा श्रुतज्ञान वर्ते छे, तथा कोई
बीजो अधिकारः संसार-अवस्था निरूपण ][ ३५