वेळा अवधिज्ञान पण होय छे. वळी कोई वेळा अचक्षुदर्शन होय छे तो कोई वेळा चक्षुदर्शन
वा अवधिदर्शन पण होय छे. हवे एनी पण प्रवृत्ति केवी रीते होय छे ते अहीं दर्शावीए छीए.
✾ मति, श्रुत अने अवधिाज्ञाननी पराधाीन प्रवृत्ति ✾
प्रथम तो मतिज्ञान छे ते शरीरना अंगभूत जे जीभ, नासिका, नेत्र, कान अने स्पर्शन
ए पांच द्रव्यइन्द्रिय तथा हृदयस्थानमां आठ पांखडीना फूल्या कमळना आकारवाळुं द्रव्यमन —
एनी सहायतावडे ज जाणे छे. जेम मंदद्रष्टिवाळो मनुष्य पोताना नेत्रवडे ज देखे छे, परंतु चश्मा
लगाववाथी ज देखे पण चश्मा विना देखी शकतो नथी. तेम आत्मानुं ज्ञान मंद छे, हवे ते पोताना
ज्ञानवडे ज जाणे छे, परंतु द्रव्यइन्द्रिय वा मननो संबंध थतां ज जाणे छे, ए विना नहि.
वळी नेत्र तो जेवां ने तेवां ज होय, परंतु चश्मानी अंदर कोई दोष होय तो देखी
शके नहि, थोडुं देखे वा अन्यथा देखे. तेम क्षयोपशम तो जेवो ने तेवो होय, परंतु द्रव्यइन्द्रिय
वा मनना परमाणु अन्यथा परिणम्या होय तो ते जाणी शके नहि, थोडुं जाणे वा अन्यथा
जाणे. कारण द्रव्यइन्द्रिय वा मनरूप परमाणुओना परिणमनने तथा मतिज्ञानने निमित्त – नैमित्तिक
संबंध छे. तेथी तेना परिणमन अनुसार ज्ञाननुं परिणमन थाय छे. तेनुं द्रष्टांतः — जेम
मनुष्यादिकने बाल – वृद्ध अवस्थामां जो द्रव्यइन्द्रिय वा मन शिथिल होय तो जाणपणुं शिथिल
होय छे. वळी जेम शीतवायु आदिना निमित्तथी स्पर्शनादि इन्द्रियोना वा मनना परमाणु अन्यथा
होय तो जाणपणुं न थाय, थोडुं थाय वा अन्यथा पण थाय.
वळी ए ज्ञानने तथा बाह्य द्रव्योने पण निमित्त – नैमित्तिक संबंध होय छे. तेनुं
द्रष्टांतः — जेम नेत्रइन्द्रियने अंधकारना परमाणु अथवा फूला आदिना परमाणु वा पाषाणादिना
परमाणु आडा आवी जाय तो देखी शके नहि, लाल काच आडो आवे तो बधुं लाल देखाय
तथा लीलो काच आडो आवे तो लीलुं देखाय. ए प्रमाणे अन्यथा जाणवुं थाय छे. वळी दूरबीन
– चश्मा वगेरे आडां आवे तो घणुं देखावा लागे; तथा प्रकाश, जळ अने काच आदिना परमाणु
आडा आवे तोपण जेवुं छे तेवुं न देखाय. ए प्रमाणे अन्य इन्द्रियो तथा मननुं पण यथासंभव
जाणवुं. वळी मन्त्रादिकना प्रयोगथी, मदिरा – पानादिकथी वा भूतादिकना निमित्तथी न जाणवुं,
थोडुं जाणवुं, वा अन्यथा जाणवुं बने छे. ए प्रमाणे आ ज्ञान बाह्य द्रव्यने पण आधीन
छे एम समजवुं.
वळी ए ज्ञानवडे जे जाणवुं थाय छे ते अस्पष्ट जाणवुं थाय छे. जेम दूरथी केवुं जाणे,
नजीकथी केवुं जाणे, तत्काल केवुं जाणे, घणा वखते केवुं जाणे, कोई पदार्थ संशयरूप जाणे, कोईने
अन्यथा प्रकारे जाणे तथा कोईने किंचित्मात्र जाणे, इत्यादि प्रकारे निर्मळ जाणवानुं बनतुं नथी,
एम ए मतिज्ञान पराधीनतापूर्वक इन्द्रिय तथा मन द्वारा प्रवर्ते छे. त्यां इन्द्रियोवडे तो जेटला
३६ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक