Moksha Marg Prakashak-Gujarati (Devanagari transliteration). Avadhigyan, Manahparyay, Kevalgyanani Pravrutti Chakshu-achakshudarshanani Pravrutti.

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ते श्रुतज्ञान छे. ए श्रुतज्ञान बे प्रकारनुं छेअक्षरात्मक तथा अनक्षरात्मक. त्यां जेम ‘‘घट’’
ए बे अक्षर सांभळ्या वा दीठा ते तो मतिज्ञान थयुं. हवे तेना संबंधथी घट पदार्थनुं
जाणवुं थयुं ते श्रुतज्ञान छे. ए प्रमाणे अन्य पण जाणवुं. ए तो अक्षरात्मक श्रुतज्ञान
छे. वळी जेम स्पर्श वडे ठंडकनुं जाणवुं थयुं ते तो मतिज्ञान छे अने तेना संबंधथी ‘‘आ हितकारी
नथी, तेथी चाल्या जवुं’’ इत्यादिरूप ज्ञान थयुं ते अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान छे. ए प्रमाणे अन्य
पण समजवुं. हवे एकेन्द्रियादिक असंज्ञी जीवोने तो अनक्षरात्मक ज श्रुतज्ञान होय छे तथा
संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोने बंने ज्ञान होय छे. ए श्रुतज्ञान छे ते अनेक प्रकारथी पराधीन एवा
मतिज्ञानने पण आधीन छे, वा अन्य अनेक कारणोने आधीन छे तेथी महापराधीन जाणवुं.
अवधिाज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवळज्ञाननी प्रवृत्ति
वळी पोतानी मर्यादा अनुसार क्षेत्रकाळना प्रमाणपूर्वक रूपी पदार्थोने जे वडे स्पष्टपणे
जाणवामां आवे ते अवधिज्ञान छे. ए ज्ञान देवो अने नारकीओमां तो सर्वने होय छे
तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय, तिर्यंच तथा मनुष्योमां पण कोई कोईने होय छे अने असंज्ञी सुधीना जीवोने
तो आ ज्ञान होतुं ज नथी. हवे आ ज्ञान पण शरीरादिक पुद्गलोने आधीन छे. अवधिज्ञानना
त्रण भेद छे
देशावधि, परमावधि अने सर्वावधि. ए त्रणेमां थोडा क्षेत्रकाळनी मर्यादापूर्वक
किंचित्मात्र रूपी पदार्थने जाणवावाळुं देशावधिज्ञान छे, ते कोईक जीवने होय छे, तथा परमावधि,
सर्वावधि अने मनःपर्यय ए त्रण ज्ञान मोक्षमार्गमां ज प्रगटे छे. केवलज्ञान मोक्षस्वरूप छे, तेथी
आ अनादि संसारअवस्थामां तेनो सद्भाव ज नथी. ए प्रमाणे ज्ञाननी प्रवृत्ति होय छे.
चक्षुअचक्षुदर्शननी प्रवृत्ति
वळी इन्द्रिय वा मनना स्पर्शादिक विषयोनो संबंध थतां प्रथम काळमां, मतिज्ञान पहेलां
जे सत्तामात्र अवलोकनरूप प्रतिभास थाय छे तेनुं नाम चक्षुदर्शन वा अचक्षुदर्शन छे. त्यां
नेत्रइन्द्रियवडे जे दर्शन थाय तेनुं नाम चक्षुदर्शन छे, ते चौरेन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीवोने ज
होय छे, तथा स्पर्शन, रसना, घ्राण अने श्रोत्र
ए चार इन्द्रिय तथा मन द्वारा जे दर्शन
थाय तेनुं नाम अचक्षुदर्शन छे. ते यथायोग्य एकेन्द्रियादि जीवोने होय छे. वळी अवधिने
विषयोनो संबंध थतां अवधिज्ञान पहेलां जे सत्तामात्रअवलोकनरूप प्रतिभास थाय छे तेनुं नाम
अवधिदर्शन छे. जेने अवधिज्ञान होय तेने ज आ अवधिदर्शन होय छे. चक्षु, अचक्षु अने
अवधिदर्शन छे ते मतिज्ञानअवधिज्ञानवत् पराधीन जाणवां थतां केवलदर्शन मोक्षस्वरूप छे
तेनो अहीं सद्भाव ज नथी. ए प्रमाणे दर्शननो सद्भाव होय छे.
१. श्रुतदर्शन अने मनःपर्ययदर्शन होता नथी केमके श्रुतज्ञान मतिपूर्वक थाय छे (तत्त्वार्थसूत्र अ०
१ सूत्र २२). तथा मनःपर्यय ज्ञान मतिज्ञानना भेदरूप इहामतिज्ञानपूर्वक थाय छे (द्रव्यसंग्रह गा० ४४
नी सं० टीका) मतिज्ञान दर्शनोपयोगपूर्वक थाय छे तेथी श्रुतदर्शन अने मनःपर्ययदर्शन
एवा बे भेद
दर्शनोपयोगमां होई शके नहि.
३८ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक