पण किंचित्मात्र मळे छे. घणुं दान देवा इच्छे छे पण थोडुं ज दई शके, घणो लाभ इच्छे
पण थोडो ज लाभ थाय. ज्ञानादिक शक्ति प्रगट थाय छे त्यां पण अनेक बाह्य कारणोनी जरूर
पडे छे. ए प्रमाणे घाति कर्मोना उदयथी आत्मानी अवस्था थाय छे.
✾ वेदनीयकर्मोदयजन्य अवस्था ✾
अघाति कर्मोमां वेदनीयकर्मना उदयथी शरीरमां बाह्य सुख – दुःखनां कारणो नीपजे छे.
शरीरमां अरोगीपणुं, रोगीपणुं, शक्तिवानपणुं, दुर्बळपणुं इत्यादि तथा क्षुधा, तृषा, रोग, खेद,
पीडा इत्यादि सुख – दुःखनां कारणो मळी आवे छे. शरीरथी बहार पण मनगमतां ॠतु
– पवनादिक वा इष्ट स्त्री, पुत्र, मित्र, धनादि तथा अणगमतां ॠतु – पवनादिक वा अनिष्ट स्त्री,
पुत्र, शत्रु, दारिद्र्य, वध, बंधनादिक सुख – दुःखनां कारणो मळी आवे छे. ए बाह्यकारणो कह्यां
तेमां कोई कारण तो एवां छे के जेना निमित्तथी शरीरनी अवस्था ज सुख – दुःखनुं कारण होय
छे, अने ए ज सुख – दुःखनुं कारण थाय छे. वळी कोई कारण एवां छे के पोते ज सुख
– दुःखनुं कारण थाय छे. ए प्रमणे कारणोनुं मळवुं वेदनीयकर्मना उदयथी थाय छे. त्यां
सातावेदनीयना उदयथी सुखनां कारणो मळी आवे छे तथा असातावेदनीयना उदयथी दुःखनां
कारणो मळी आवे छे. अहीं एम समजवा योग्य छे के – ए कारणो ज कांई सुख – दुःख उपजावतां
नथी, पण मोहकर्मना उदयथी आत्मा पोते ज सुख – दुःख माने छे. वेदनीयकर्मना उदयने अने
मोहनीयकर्मना उदयने एवो ज संबंध छे के ज्यारे सातावेदनीयजन्य बाह्य कारण मळे त्यारे
तो सुख मानवारूप मोहकर्मनो उदय थाय छे तथा ज्यारे असातावेदनीयजन्य बाह्य कारण मळे
त्यारे दुःख मानवारूप मोहकर्मनो उदय थाय छे. वळी ते ज कारण कोईने सुखनुं तथा कोईने
दुःखनुं कारण थाय छे. जेम कोईने सातावेदनीयना उदयथी मळेलुं जे वस्त्र सुखनुं कारण थाय
छे तेवुं वस्त्र कोईने असातावेदनीयना उदयथी मळतां दुःखनुं कारण थाय छे. माटे बाह्य वस्तु
तो सुख – दुःखनुं निमित्त मात्र छे. सुख
– दुःख थाय छे ते मोहना निमित्तथी थाय छे. निर्मोही
मुनिजनोने अनेक ॠद्धि आदि तथा परिषह आदि कारणो मळवा छतां पण सुख – दुःख ऊपजतुं
नथी, तथा मोही जीवने कारण मळो वा न मळो तोपण पोताना संकल्पथी ज सुख – दुःख थया
करे छे. तेमां पण तीव्र मोहीने जे कारणो मळतां तीव्र सुख – दुःख थाय छे ते ज कारणो मळतां
मंद मोहीने मंद सुख – दुःख थाय छे. माटे सुख – दुःख थवानुं मूळ बळवान कारण
मोहकर्मनो उदय छे अन्य वस्तु बळवान कारण नथी, परंतु अन्य वस्तुने अने मोही जीवना
परिणामोने निमित्त – नैमित्तिकनी मुख्यता होय छे, जे वडे मोही जीव अन्य वस्तुने ज सुख
– दुःखनुं कारण माने छे. ए प्रमाणे वेदनीयकर्मना उदयथी सुख – दुःखनां कारणो नीपजे छे.
✾ आयुकर्मोदयजन्य अवस्था ✾
आयुकर्मना उदयवडे मनुष्यादि पर्यायोनी स्थिति रहे छे. ज्यांसुधी आयुकर्मनो उदय रहे
४४ ][ मोक्षमार्गप्रकाशक