आयुनो उदय न होय त्यारे अनेक उपाय करवा छतां पण शरीरथी संबंध रहेतो नथी. पण
ते ज वखते आत्मा अने शरीर जुदां थई जाय छे. आ संसारमां जन्म, जीवन अने मरणनुं
कारण आयुकर्म ज छे. ज्यारे नवीन आयुनो उदय थाय छे त्यारे नवीन पर्यायमां जन्म थाय
छे. वळी त्यां पण ज्यांसुधी आयुनो उदय रहे त्यांसुधी ते पर्यायरूप प्राणोना धारणथी जीववुं
थाय छे अने आयुनो क्षय थतां ए पर्यायरूप प्राणोना छूटवाथी मरण थाय छे. सहज ज एवुं
आयुकर्मनुं निमित्त छे. अन्य कोई उपजाववावाळो, रक्षा करवावाळो के विनाश करवावाळो नथी
एवो निश्चय करवो. वळी जेम कोई नवीन वस्त्र पहेरे, केटलोक काळ ते रहे पछी तेने छोडी
कोई अन्य नवीन वस्त्र पहेरे, तेम जीव पण नवीन शरीर धारण करे, ते केटलोक काळ धारण
करी रहे पछी तेने छोडी अन्य शरीर धारण करे छे. माटे शरीरसंबंधनी अपेक्षाए जन्मादिक
छे. जीव पोते जन्मादिक रहित नित्य ज छे, तोपण मोही जीवने भूत
छे. ए प्रमाणे आयुकर्म वडे पर्यायनी स्थिति जाणवी.
अने आत्माना प्रदेशोनुं एक बंधान थाय छे, तथा संकोच
स्पर्शन, रसना आदि द्रव्यइन्द्रियो नीपजे छे. वा हृदयस्थानमां आठ पांखडीवाळा खीलेला
कमळना आकार जेवुं द्रव्यमन थाय छे. वळी ए शरीरमां ज आकारादिना विशेष वा वर्णादिकना
विशेष होवा छतां स्थूलसूक्ष्मत्वादिक होवा इत्यादि कार्य थाय छे. शरीररूप परिणमेला
परमाणुओ आ प्रकारे परिणमे छे. श्वासोच्छ्वास अथवा स्वर नीपजे छे ए पण पुद्गलना
पिंड छे तथा ए शरीरथी एक बंधानरूप छे. एमां पण आत्माना प्रदेशो व्याप्त छे.
श्वासोच्छ्वास ए पवन छे. हवे जेम आहारने ग्रहण करीए, निहारने बहार काढीए तो ज
जीवी शकाय, तेम बहारना पवनने ग्रहण करीए अने अभ्यंतर पवनने काढीए तो ज जीवितव्य
रहे. माटे श्वासोच्छ्वास जीवितव्यनुं कारण छे. जेम आ शरीरमां हाड
मोढामां मूकेला ग्रासने पवन वडे पेटमां उतारीए अने मळादिक पण पवनथी ज बहार काढीए
छीए. एम अन्य पण जाणवुं.